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निक्षेप विषये सिद्धांतकी गाथा. करणेका नही जान सकें, उस वस्तुमें “ चार निक्षेपें" तो अवश्य ही करें. ॥१॥
इसी ही गाथाको, ढूंढनी पार्वतीजीने, सत्यार्थ-पृष्ट-२० में लिखके, अर्थ भी किया है सो यह है कि जिस जिस पदार्थके, विषयमें, जो जो निक्षेपे जाने, सो सो निर्विशेष निक्षेपे । जिस विषयमें ज्यादा न जाने, तिस विषयमें चार निक्षेपे करे । अर्थात् वस्तुके स्वरूपके समजनेको, चार निक्षेप तो करे । नाम करके समजो । स्थापना ( नकसा) नकल करके समजो । और ऐसे ही पूर्वोक्त द्रव्य, भाव, निक्षेप करके • समजो । परंतु इस गाथामें ऐसा कहां लिखा है कि-चारो निक्षेपे, वस्तुत्वमें ही मिलाने, वा चारों निक्षेपे वंदनीय है । ऐसा तो कही नहीं । परंतु पक्षसें, हठसे, यथार्थपर निगाह नहीं जमती, मनमाने अर्थ पर दृष्टि पडती है । यथा हठ वादियांकी मंडलीमें, तत्वका विचार कहां, मनमानी कहैं चाहे जुठ चाहे सच है ॥ .
पाठक वर्ग इस गाथा "अर्थ" इतना ही मात्र है किदूनीयामें जो वस्तु मात्र है, उनकी समन विशेष प्रकारसें भी कर सकते है, अगर विशेष प्रकारसे नहीं कर सकें तो, चार प्रकारसें तो, अवश्य ही करनी चाहीये । इस विषयको सिद्धांतकारोने-चार निक्षेपकी, संज्ञासें वर्णन किया है । परंतु ढूंढनीजीने, सिद्धांतकारोंका अभिप्रायको समजे बिना, अधिक पणेसे छिनकाट किया है, सो तो हमारा किया हुवा चार निक्षेपका लक्षणार्थसे ही, आप लोकोंने समज लिया होगा, और आगे पर भी जिहां जिहां वि. चार करते चलेंगे, वहां वहां समजाते जावेंगे । इस वास्ते इहां वि. शषपणे कुछ नही लिखते है,
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