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जिन प्रतिमाके निंदकोंको शिक्षा. (३७ ) 'वारगुणे अरिहंत विराजे, पाठ कहां दरसाया है ॥ मनको भाया मानलिया, मनकाल्पितपंथ चलाया है। सीख० ॥४॥ चच्चा चोरी देवगुरुकी, करके सर्व चुराया है। भाष्य चूर्णि नियुक्ति टीका, अर्थसे चित्त चोराया है ॥ चितकल्पित जूठे अर्थोसें, सच्चा अर्थ चुराया है। सीख० ॥ ५ ॥ छच्छा छमछरीको चालीश, वीसचोमातें छांन्या है। २ पक्खी बार लोगस्सका काउसग, पुछो किसमें गाया है ॥ मूल मात्र बत्ती सूत्रोंका, खोटा हठकी छाया है ॥ सी० ॥ ६ ॥ जज्जा जिनवर ठाणा अंगे, ठवणा सत्य ठराया है। प्रभु पडिमाको पथ्थर जाणे, जालम कैसा जाया है ॥ चार निखेपा जोग जनाया, जिन आगममें जोया है । सी० ॥७॥ झझ्झा जूठ बतावे केता, जेता जैनमें गाया है। तीर्थकर गणधर पूरवधर, सबको जेब लगाया है ।। मुखपर पाटा कानमें डोरा, दैत्यसारूप बनाया है। सी० ॥ ८॥ टट्टा टटोल देख टोंटोंके, क्या गणधर फरमाया है । रायपसेनी सत्तर भेदें, जिन प्रतिमा पूजाया है ।। हितसुख मोक्ष तणा फल अर्थे, प्रगटपणे बतलाया है । सी ०॥९||
१ बत्रीश सूत्रोंके मूल पाठमें-अरिहंतके १२ गुण। और १८ दूषणका वर्णन नहीं है । तोपि छे हमारे ढूंढक भाईओ, कहांसें लाके पुकारते है, ते उनका मान्य ग्रंथ बतलावें ॥
. २ पंजाब तरफ एक अजीव पंथी ढूंढीये है, जिसको सत्यार्थ. पृ. १६७ में ढूंढनीजीने में में करनेवाले लिखेथे, सो हमेश चारलो. गसकाही काउसगकरते है । और जीव पंथी-छ मरीको ४० । चोमासीको २० । पक्खीको १२ का करते है। परंतु बत्रीश सूत्रका मूल पाठमें यह विधि नहीं है। ऐसी बहुतही बातें नहीं है ।
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