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( २३ )
प्रतिमा मंडन रास.
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उपदेश अच्युत देवने, प्रभावती पूजी शुभ चित्तके । कु. ।। ४२ ।। श्री आवश्यके दाखियो, वगुर शेठ तणो दिष्टांतके | मल्लि स्वामी प्रतिमा तणी, इह लोकारथ सेव करतके । कु. ॥। ४३ ।। गाथा भत्त पयन्ननी, जोवो श्रावक जन आलंबके । करावे जिन द्रव्यसुं, जिनवर देवल जिन बिंबके । . कु. चौवीसथ्थो मानो तुम्हे, कीत्तिय, बंदिय, महिया, पाठके । महियानो इयुं ? अर्थ छे, साच कहो एकडो मांडके | कु. ।। ४५ ।। नाम जिना ठबणा जिना, द्रव्य जिना भावजिना वखाणके । मानो कांइ न मूढमति, चारे निक्षेपा सूत्रां जाणके । कु. ॥ ४६ ॥ भुवण पति वाण व्यंतरा, जोइसी वली वेमाणिय देवके । ए सुर चार निकायना, सारे जिन प्रतिमानी सेवके । कु. ।। ४७ ।। नंदी अनुयोग दुवारमें, पूजाना सगले अधिकारके | सूत्रेही माने नहीं, तो जानिये बहुल संसारके । कु. जो कहियो पूजा विषे, थाय छे बहुला आरंभ | तो दृष्टांत कहुं सांभलो, मत राखो मन मांहि दंभ | कु. ॥ ४९ ॥ ज्ञाता अंगे इम को, प्रतिबोध्या मल्लिनायें छ मित्रके ।
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प्रतिमा सोवनमें करी, दिन प्रति मूके कवल विचित्रके । कु. ।। ५० ।।
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जीव तणी उतपति थइ, कुथित आहार तणो परमाणके ।
सावध आरंभ ये कियो, त्रिहुअरथामें अरथ वखाणके । कु. ॥ ५१ ॥
१ महिया, शब्दका अर्थ - देखो सम्यक्क शल्योद्धार में || २ आरंभ में धर्म नहीं होता है, ऐसा कहने वालेको समजाते है।।
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३ छ मित्रको प्रतिबोंधने के वास्ते मल्लिनाथने, जीवों की उत्पत्ति कराईथी, सो धर्मके वास्ते कि, अधर्मके वास्ते ! ||
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