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मृतक देहकी मूर्तिका वर्णन.
( ৬७)
॥ दो प्रकारकी ढूंढक 'बीयांका ' स्पष्टीकरण |
॥ हे ढूंढक भाइयो ? यह दो प्रकारकी छबीयां, हमने दाखल करवाई है उसमेंसें प्रथम एक तो है काठियावाडका - लींमडी सेहर के नामसें प्रसिद्ध, लींमडी संघाडेके ढूंढक साधु समुदायका - पूज्य श्री 'गोपाल' स्वामीजीकी । जब यह ऋषिजी - संवत् १९४७ का वै. शाष मासमें - गत्यंतरको प्राप्त हुये, तब कितनेक हाजर भक्तों ने -पूयकी मृतक देहको - एक तखत ( अर्थात् पट्टे ) पर बिठाके, और नीचे भाग तीन (३) जीवते साधुको बिठाके दर्शनार्थे उनकी छबीको उत्तराई लीई है, और यह छवी है सो - गोपाल स्वामीका - स्थापपना निक्षेप' का विषय के, स्वरूपकी है तो अब विचार करो - कि- गोपाल स्वामीका दुर्गधरूप मृतक देहकी 'मूर्त्ति ' तुमको दर्शन करने के योग्य हो गई? और महा सुगंधमय, तीर्थकरों के देहकी, चंद्रोज्वल पाषाणमय, अलोकिक भव्य मूर्त्ति ' हमारे ढूंढक भाईयोंको दर्शन करनेके, योग्य नहीं ? तो क्या उनोंको तीर्थकर भगवानसें ही, कोई चैर भाव हो गया है ? जो उनोंकीही निंदा करनेको थोथा पोथा लिख मारते है ? हे ढूंढक भाईयो थोडासा क्षणभर विचार करो ? इसमें तीर्थकरों का बिमादा होता है कि तुम तुमेस आत्माका बिगाडा करलेते हो ?
अब हम ढूंढनी पार्वतीजीकी-छबीका, कुछ विशेष विवेचन करके दिखलाते है, क्योंकि-धर्मका दरवाजायें-ढूंढक वाडीलालने, और इसी ढूंढनी पार्वतीजीने भी- १ नामनिक्षेप | २स्थापना निक्षेप । और १ द्रव्य निक्षेप | यह ऋण निक्षेपको - श्री अनुयोग द्वार सूत्रकी जुठी साक्षी देके
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