SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ढूंढक भक्ताश्रित-त्र पार्वतीका - २स्थापना निक्षेप ( ४१ ) लिखती है ? और यही ढूंढनी पार्वती, दूसरी साधारण वस्तुका - स्थापना निक्षेपको, सार्थक, और कार्यकी सिद्धिमें उपयोगवालाभी, जैन सूत्रोंका - मूल पाठसें ही, लिखके दिखाती है, परंतु विषरीतमति हो जानेसें कुछ विचारही, नहीं कर सकी है ॥ देखो - सत्यार्थ पृष्ट ७३ । ७४ में - यथा--सूत्र उबाईजीमें- पूर्णभद्र यक्ष, यक्षायतन, अर्थात् - मंदिर, मूर्त्तिका, और उसकी -पूजाका, पूजाके फलका - धन संपदादिकी, प्राप्ति होना, इत्यादि भलीभांत सविस्तार - वर्णन - चला है ।। और अंतगढ सूत्र में - मोगर पाणी, यक्षके-मंदिर, मूर्तिका । हरण गमेषी देवकी - मूर्तिपूजाकां । और विपाक सूत्रमें - उंबर यक्षकी- मूर्ति, मंदिरका, और उसकी पूजाका फल - पुत्रादिका होना, सविस्तार पूर्वोक्त वर्णन चला है ।। पृष्ट. ७४ओ ७से - हे भव्य इस पूर्वोक्त कथनका - तात्पर्य यह है कि, वह जो सूत्रोंमें नगरियां केवर्णन के आदमें, पूर्णभद्रादि यक्षों के मंदिर चले हैं सो, वह यक्षादि सरागी देव होते हैं, और बाले बाकुल आदिककी इछा भी रखते है, और राग द्वेषके प्रयोगसें अपनी - मूर्त्तिकी पूजाsपूजा देखकेवर, शराप भी देते है ताते हरएक नगरकी - रक्षारूप, नगरके बाहर इनके मंदिर हमेशांसे चले आते है, संसारिक स्वार्थ होनेसें ॥ A पाठकवर्ग ! अब इसमें विचार किजीये कि प्रथम यही ढूंढनीजी अपनी थोथीपोथीमें - नामनिक्षेप, स्थापना निक्षेप, और द्रव्य निक्षेप, । यह तीनों निक्षेपोंको - निरर्थक, और कार्य साधक नहीं, वैशा वारंवारं लिखके - पत्रके पत्रे, भरती चली आई | और यह पूर्वोक्त सूत्रपाठका विचारसें - स्थापना निक्षेपका विषयरूप, यक्षादिकोंके - पथ्थरकी आकृतिरूपसें, अर्थात् मूर्त्तिके स्वरूपसें, उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy