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ढूंढक भक्ताश्रित-त्रणें पार्वतीका-२स्थापना निक्षेप. (३९)
ढूंढक-हे भाई मूर्तिपूजक-वारंवार ऐसा क्या पुछता है, देख-मूर्तियां, नतो कोई-नीति रही है, और नतो कोई-अमीति. भी रही है, सोतो अपना आत्मामेंही रही हुई है, किसवास्ते ऐसी भ्रमितपणेकी बातां हमको मुनावता है ? ॥ . ___मूर्तिपूजक-हे भाई ढूंढक-तेरा कहना यह सत्य है, परंतु उस-प्रीति अनीति होने में तुमको, ढूंढनीजीकी-मूर्ति, कुछ कारण रूप, होती है या नहीं ? इतना मात्रही में तेरेको पुछता हुं । जो तूं कहेगाकि-हमको प्रीति अप्रीति उत्पन्न होनेमें-मूर्ति, कारणरूपे कुछभी नहीं है,तो पिछे हम-पुछते है कि-काठीयावाड देशका-लिमडी सेहरमें, संवत् १९४७ का-वैशाख मासमें, पूज्यश्री-गोपाल ऋषनी, अचानकपणे देहांत हुयेवाद, हाजारभक्त सेवकोने, मृतक शरीरको पट्टे उपर बिठाके, और नीचे के भागमें-त्रण जीवते साधुको बिठायके, उनका फोटो ग्राफ, किसवास्ते खिचवाया ? । और पंजावी ढूंढक श्रावकोने-जीवते हुये दंडक-सोहनलाल आदि सा. धुओंका । और ढूंढनी पार्वतीजी आदि साध्वीयांका । और दक्षिण अहमदनगरमें-चंपालाल आदि, दंडक साधुओंका । और आगरा सेहरमें पचीस त्रीसेक श्रावकोंकी साथमें बैठे हुये-पांच सात साधु
ओंका । इत्यादिक अनेक स्थलोम-ढूंढक श्रावकोंने, अपना अपना मान्याहुवा-गुरुरूप ढूंढक साधुओंका, और ढूंढनी साध्वीयांका, फोटोग्राफ, किसत्रास्ते खिचत्राया ? और हमने यहभी सुना हैकि कोइ कोइ अधिक भक्तोंने तो, अपने तालेजिमेंभी कबज करके रखे है, सो किसवास्ते करते है ? उनका कारण तूं ही दिखलाव ? हमनेतो इस लेखसें, सिद्ध करके ही दिखलाया है कि-जो उपादेय बस्तुकी-मूर्तिहै, सो मूर्ति, तुमकोभी-प्रीति विशेषका, कारण हीहै। इसीवास्ते तुमलोको-ढूंढक साधु, साध्वीयांका- फोटोग्राफ, खिच
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