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ढूंढक भक्ताश्रित-त्रणें पार्वतीका-१ नाम निक्षेप. (३५) द्वारमें, जेठमलजीकी—अज्ञानता, और मूढता, देखके मात्र इतना ही लिखाथा कि-जेठा मूढमातिने, जेठा अल्प मतिने,जेठा अज्ञानीने, जेठा निन्हवने, समजे विना-कुछ का कुछ, लिख मारा है । इतना लेख परतो अनेक हठीले ढूंढकोंने अनेक प्रकारका उत्पात करनेका विचार कियाथा, और आत्मारामजी महाराजाको-परकारमें भी चढा देनेके विचार पर आ गयेथे । तो अब विचार करो कि-अ. दृश्य रूप ढूंढक जेठमलजीका-नाम निक्षेप, तुमको उपादेय रूप, न होता तो इतना धांधल ही किस वास्ते मचा देते । सिद्ध हुवा है कि-ढूंढकमें-जेठमल नामका निक्षेप, तुमने भी-उपादेय रूप ही, माना है । तैसें ही ढूंढनीजीमें-पार्वती, यह-नामका निक्षेप, उपादेय स्वरूपसे-मानोंगे, तब ही वेश्या पार्वतीकी तुल्यता न होगी। नही . तो तुमको उत्तर देनेकी भी जगा न रहेगी ।। ___ और जो-नाम है, सो. ही-नाम निक्षेपका, विषय, है । दूसरी जो जो कल्पनाओ ढूंढनीने किई है सो तो-जैन सिद्धांत-निरपेक्ष होके ही, किई है ॥ __. ढूंढक-हे भाई मूर्तिपूजक-इस मुजब तो-उपोदय वस्तुमेंजो नामका निक्षेप है, सो भी उपादेय रूप ही-पानना, उचित मालूम होता है । क्यों कि ऋषभादिक, महावीर, पर्यंत-नाम है सो भी, बैल आदिपशुओंमें, और अनेक पुरुषादिकोंमें भी, रखा ही जाता है, परंतु तीर्थंकर जीवाधिष्टित-शररोिंमें, रखा हुवा-ऋषभादिक महावीर पर्यंत-नाम है सो, तीर्थकरोंके अभिप्रायसें-परम उ. पादेय रूप, हम भी मानलेवेंगे । परंतु तुमलोक पथ्थरकी-मूर्ति में, तीर्थंकरोंका-स्थापना निक्षेप, करके भगवान् ठहराय लेते हो, सो तो हम भगवान् रूपसें, कभी न मानेंगे ।
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