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________________ . शिवभक्ताश्रित-त्रण पार्वतीका ४ भाव निक्षेप. (२७) रके भी देखता नहीं है, अथवा किसीको वर्णन करते हुयेसे--श्र. वण करके, ते भक्तने कहा कि--अरे महा भाग-ऐसी महा पापिणीयांका- चरित्र, हमको मत सुनावना । ऐसा कह करके वेश्या पा. र्वतीका- द्रव्य निक्षपके विषयको भी हेय पणा, मानता हुवा--अभाव ही, प्रदर्शित करता है । - और ढूंढनी साध्वी पार्वतीजीकी-पूर्व अवस्था यह है कि-दीक्षा लेनेकी इछा करके, किसी साधीके पास आई हुई, और अ. पनी गुरुनीनीकी पास-कई दिनतक रहकर, पठन पाठन करतीथी ते । अपर अवस्था यह है कि, जो ढूंढनी पार्वतीजी-उपदेशादिक करतीथी, और ग्रंथादिककी रचनाभी करतीथी ते, उनकी समाप्ति हुई सुनते है, इत्यादिक-द्रव्य निक्षेपका-विषयकी वार्ता-सो शिव भक्त, किसीसें श्रवण करके नतो हर्षित होता है, और नतो दिल. गीरीकोभी प्रदर्शित करता है, केवल ज्ञेय स्वरूपका पदार्थको समज करके-मध्यस्थ भावको. अंगीकार कर रहा है ।। ॥ और सो शिवभक्त-शिव पार्वतीजीकी-अनेक प्रकारको लीलावाली-पूर्व अवस्थाको, अथवा अपर अवस्थाको-श्रवण करनेके लिये, पंडित पुरुषको संतुष्ट द्रव्यको,-अर्पण करके भी-द्रव्य निक्षेपका विपयरूप, अपना उपादेयकी--ते वार्ताओंको, वारंवार श्रवण करनेकी इछा करता है ॥ ॥ इति शिव भक्त आश्रित-त्रणें पार्वतीका-तिसरा द्रव्यनि क्षेपके विषयका स्वरूप ॥ ॥ अब उसही शिव भक्त आश्रित-त्रणें पार्वतीका. चतुर्थ-भाव निक्षेपका, स्वरूप-प्रदर्शित करते है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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