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निक्षेपमें सार्थकता निरर्थकताका, विचार. (१५) आकृति [ मूर्ति ] भी, देखनेकी-खास जरुर ही पड़ती है । यह उस पदार्थका दूसरा-स्थापना निक्षेपका विषय है २॥
फिरभी उस पदार्थका विशेष ज्ञानकी प्राप्ति केलिये-गुण दोष रूप प्राप्तिके स्वरूपकी-पूर्व अवस्था, या अपर अवस्था है, उनसेंभी उस वस्तुका-बोध-प्राप्त करनेकी आवश्यकता ही है, और उसी पूर्व अपर अवस्थाका स्वरूपको, शास्त्रकारोंने-द्रव्य निक्षेपके स्वरूपसे, माना है ३ ॥ ___अब देखो कि-वर्णन किये हुये जो-त्रण निक्षेप है, उस त्रण निक्षेपके स्वरूपका भी बोध, अपनेमें करानेवाला जो साक्षात् स्वरूप पदार्थ ( अर्थात् वस्तु ) है, उस पदार्थको शास्त्रकारोंने-भाव निक्षेपका विषय भूत माना है. ४ ॥ ___ अब इस-चार निक्षेपके विषयमें, विचार यह है कि-जब कोईभी पुरुष-वह भाव निक्षेपका विषय भूत साक्षात् पदार्थको-देखेंगे अथवा उसने देखा हुवा होगा, तबभी पूर्वोक्त-त्रण निक्षेपका, ज्ञान पूर्वकही, उस भावनिक्षेपका विषयभूत साक्षात् पदार्थकाभी-ज्ञान होगा, परंतु प्रथम के-त्रण निक्षेपके स्वरूपको जाने विना, केवल उस भाव वस्तुको देखने मात्रसें, कभीभी उनका यथावत् ज्ञान न होगा,
और उनका आदर भी न कर सकेगा ।। क्योंकि हम कोगलमें फि. रते है, और उहाँपर रही हुई अमूल्य अमूल्य वनस्पढिरखा कि मोभाव निक्षेपका विषय भूत है, उनको साक्षात्पणे देखतेग्नानुगे, प. रंतु उस-पदार्थोंका, प्रथमके-त्रण निक्षेप विषयका, यथावत् ज्ञान, मिलाये विना, उनोंका कुछभी गौरव नहीं कर सकते है । कारण उनोंका प्रथमके-त्रण निक्षेप विषयका, हमको ज्ञान ही नहीं है, तो पिछे वह-भाव निक्षेपका विषयभूत साक्षात् पदार्थोंका, आदर कैसे
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