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ढूंढियोंके - पराजयका, विचार.
(१८९)
कीमेंसे - सभाकी कारवाई भी देखता रहा । जबमें भी उहां हा जरहीथा, और एक हाजर कविने,
गजलमें कविता भी, सभाके अंत में गान करके सुनाईथी सो नीचे लिख दिखाता हूं.
गजल.
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अरे ढूंढीयो तुम, गजब क्या किया; जो शास्त्र भूलाकर बता क्या दिया । १ । तुमे अकलके ढोर, नहि जानते: जो शास्त्र उलट, अर्थ पेछानते मुनि कमलविजकी, सभाथी सोहनलालसें; एतकरार पायाथा, टांडेमें इस्तिहारसे । ३ । संवत् १९४७ फाग, चउदशके दिन; सभा बीच बेठेथे, पंडित महासन मुनिजीने नोट बेठ सभामें दिया; सोहनलालने आने से इनकार बिलकुल किया |५| सभाका बियान, मुजसें होता नही; बडीबात है, मुख कहता नही मुनिने जो शास्त्र, अर्थथा किया; . उसी वख्त परवान, सभाने किया सभा में न आये तो, समजा गया; सबो पोल तुमरा, जहार हो गया अपना अगर, कुशल चाते हो तूंम; श्री जिन प्रतिमाकी, लेलो शरण किसीके बकाने से, तूंम ना बको; पत्ती खोलकर, हाथमें तूंप रखो
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