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ढूंढनीजीकी - मूर्त्ति पूजाका, विचार.
artist समक्ष करके, अधिक लिखना तहकुबही करते चले आये है । जिससे पाठक वर्गको वांचतेभी कंटाला रहेगा नही. इत्पले बलविते.
ढूंढनी -- पृष्ठ १११ से - मूर्त्ति पूजा कहांसे चली ऐसा प्रश्न उठाके उनकी हद, दिखानेको प्रवृतमान हुई पृष्ट. १५२ ओ, ४ से लिखती है कि जो बारावर्षी कालसे-पीछे कहते हैं, सो तो प्रमा णोंसों-ठीक मालूम होता है। हम अभी ऊपर, मूर्ति पूजा निषेधमें चार ग्रंथों का पाठ, प्रमाणमें लिखचुके हैं, जिसमें प्रथम स्वप्ना धिकारमें - १२ वर्ष ? काल पोछेही, मूर्तिपूजाका आरंभ, चलाया लिखा है || और जो महावीर स्वामीजी के समयम- कहते है, सोतो सिद्ध होती नहीं - वैसा कहकर, भगवती शतक १२, उद्देशा २ से जयंति श्रमणोपासकका, और ज्ञाता धर्म कथासे, नंदमणियारका उदाहरण दिया है । फिर. पृष्ट. १५३ ओ. १४ से - और जो कहते हैं कि - पहिले ही से, चली आती है, सो इसमें कोई पूर्वोक्त कारणसे, प्रमाण तो है नहीं || परंतु पहले भी मूर्ति पूजा, होगी तो आश्चर्य ही क्या है ? | क्योंकि ऐसे हीं - जिन साधुओंसे, संयम नहीं पला होगा, उन परिगृहधारियोंने अपना पोल, लुकानेको, और ज्ञानभंडारा नामसे - धन इकठा करनेको, थापली होगी ।
समीक्षा - पाठक वर्ग ! इस ढूंढनीजीने - हृदय उपरभी कोई नवीन प्रकारका पाठा, चढालिया होगा ? जो अपना लिखाहुवाका विचार आपभी नही कर सकती है ? केवल मिध्यात्व के नशे में बकवाद ही करती हुई चलीजाती है, क्यौं कि, १ भगवती सूत्र, २ ज्ञातासूत्र, ३ राज प्रनीय सूत्र, ४ जंबुद्वीपपन्नती सूत्र, ५ उपाशक दशा सूत्र, ६ उवाई सूत्र, ७ महा
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