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अथं तृतीय विवाह चूलियाका. (१६५) पूजकोने-मंदिर, मूर्तिका-पूजना, सम्यक्त्वकी पुष्टि मानी है, और जिनाज्ञा मानी है । सोई बात इस विवाह चूलियाके पाठसे-संपूणपणे सिद्ध है । परंतु हमारे ढूंढक भाईयोंकी मतिही मूढ बन जाती हैं, सो विचार नहीं कर सकते है. ॥
अब सूत्र, और अर्थके साथ, विचार करके दिखावते है. ॥
प्रथम केवल मूत्तिके विषये ही-गौतम स्वामीजीने-भगवान्को पुछा कि-हे भगवन् मूत्ति" कितने प्रकारकी होती है। उनके जूबाबमें भगवान् अनेक प्रकारकी मूर्ति कहकर-पथम, ऋषभदेव आदि २४ तीर्थकरोकी-मूर्तियां वर्तमानकाल आश्रित होके दिखाई । और अतीत काल आश्रितभी २४ तीर्थकरोंकी "मूर्तियां" दिखाई । और जो अनागत कालमें होनेवाले २४ तीर्थंकरो है, उनकीभी " मूर्तियां” दिखाई । पिछे राजादिककी-मत्तियांभी दिखाइ. ॥ अब विचार करो कि-तनिाही कालमें, वीतरागदेवकी " मूर्तियां " की स्थापना सिद्ध हुई या नही ! ॥ फिर, तीर्थकरोंकीही प्रतिमा ओंके वंदना, पूजाका, प्रश्न किया कि-हे भगवन्, जिन पडिमाको. वंदन, और पूजन, करना। उसके उत्तरमेभी भगवंतने यही जूबाब दिया कि-हंता गोयमा, वंदेंभी, और पूजेभी । और दूंढनीभी इसका अर्थ यही लिखती है, परंतु मिथ्यात्वके नशेमें विचार नहीं आया है. ॥ इसमें विचार यह है कि-जब भगवंतने, तीर्थकरोंकी मूर्तियोंको वंदना, करनेकी, और पूजन, करनेकी आझा फरमाई तो चतुर्विध संघके बिना-वंदन, और पूजन, दूसरा कौन करेगा ? और पिछे श्रावकोंके विना, वीतराग देवकी मूत्तियांका " पूजन" भी दूसरा करनेवाला कौन होगा ? ॥ और द्रौपदीके पाठमें, " जिन मूर्तिको ” उठाने के लिये जो मरडामरदी करके-कामदेवकी मर्तिकी सिद्धि करनेको गई हैं सो, उन्मत्तपणा
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