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अथ तृतीय विवाह चूलियाका.
( १६३ )
हिंसइ, जाव तस्सकाय हिंसइ, आउकम्म वज्जा सत्तकम्म पगडीउ सढिल बंधणय निगड बंधणं करिता, जाव चाउरंत कंतार अणु परियहयंति, साया वेयणि ज्जं कम्मं भुज्जो २ बंधइ, । से तेणठेणं गोयमा - जाव नोलभेजा ॥ -
अब ढूंढनीकाही अर्थ - लिखते है-हे भगवन् मनुष्यलोकमें, कितने प्रकारकी " पडिमा " ( मूर्ति ) कही है। गौतम अनेक प्रका रकी कहीं हैं ऋषभादि महावीर ( वर्द्धमान) पर्यंत, २४ तीर्थकरोंकी । अतीत, अणागत, चौवीस तीर्थकरोंकी पडिमा । राजाओकी पडिमा । यक्षोकी पडिमा । भूतोंकी पडिमा | जाव धूमकेतुकी पडिमा || हे भगवन् जिन पडिमा की वंदना करे, पूजा करे, हां गौतम - वंदे, पूजे ॥ हे भगवन् जिन पडिमाकी - वंदना, पूजा, करते हुए - श्रुत धर्म, चारित्र धर्मकी, प्राप्ति करें, गौतम नहीं, किस कारण ! हे भगवन् ऐसा फरमाते हो कि जिन पडिमा की वंदना पूजा करते हुये, श्रुतधर्म, चारित्रधर्मकी प्राप्ति नहीं करे । गौतम पृथ्वी काय आदिछः कायकी हिंसा होती है, तिस हिंसासे, आयु कर्मवर्ज, सात कर्मकी प्रकृतिके ढीले बंधनोंको, करडे बंधन करें, ता ते ४ गतिरूप संसार में - परिभ्रमण करे, असांता वेदनी वारवार बांधे, तिस अर्थ करके हे गौतम-जिन पडिमा के पूजते हुए धर्म नहीं पावे. इति ॥ इसमें भी " मूर्ति पूजा " मिथ्यात्व और आरंभका कारण होनेसे - अनंत संसारका हेतु कहा है. ॥
|| समीक्षा - पाठक वर्ग ! यही ढूंढनी - वीतराग देवकी - वैरिणी बनी gs, अपनी थोथी पोथीमें- जो मनमें आया सोही लिखती चली आई देखो. पृष्ट. ४८ में तो लिखा कि- मूर्तिको वंदना करना,
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