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________________ अंबडजीका सूत्रपाठ. (१०५) त्थिकोंके माने हुये देव, शिवशंकरादि २। (अणउत्थिय परिग्गहियाणिवा अरिहंतचेइय) अन्यउत्थिकों से किसीने (परिग्गहियाणि) ग्रहण किया ( अरिहंतचेइय ) अरिहंतका-सम्यक् ज्ञान, अर्थात् भेषतो है परिव्राजक, शाक्यादिका, और सम्यक्त्व व्रत, वा अणु व्रत, महाव्रत रूप, धर्म अंगीकार किया हुआ है जिनाज्ञानुसार ३ । इनकी (वंदित्तएवा) वंदना ( स्तुति) करनी (नमांसत्तएवा).नमस्कार करनी, यावत् ( पज्जुवासित्तएवा) पर्युपासना (सेवाभक्तिका करना) नहीं कल्पै ! पृष्ट ७९ ओ. ११ में लिख. तीहै कि, नया क्या इस पाठका यही अर्थ यथार्थ है. ... समीक्षा-पाठकवर्ग ! इस ढूंढनीजीका हठ तो देखो कितना है कि-जो इसने अर्थ किया है, सो अर्थ नतो टीकामें है, और नतो टब्बार्थमें-कोइ आचार्य ने किया है. ॥ और (गण्णत्थ अरिइंतेवा, अरिहंत ( चेइयाणिवां) इस सूत्रका अर्थको छोडके, केवल मनोकल्पित अर्थ करके कहती है कि, नया क्या इस पाठका यही अर्थ यथार्थ है । ऐसा कहती हुई को कुछभी विचार मालूम होता हे ! हे सुमतिनी प्रगटपणे अनर्थ करनेको, ईश्वरने साक्षात् तेरेकुं भेजी है ? कि, जो आजतक हो गये हुये भाष्यकार, टीकाकार, टब्बाकार, यह सर्व जैन आचार्योंसे निरपेक्षहोके, अनर्थ करके क. हती है कि इस पाठका यही अर्थ यथार्थ है, तेरेको क्या कोईभी पुछने वाला न रहा है, कि, हे ढूंढनीजी यह अर्थ जो आप करते। हो सो किस प्रमाणिक ग्रंथके आधारसे करतेहो ? इनता मात्र भी कोई सुज्ञ, संसार भ्रमनका भयसें, पुछने वाला होता तो, तेरी स्त्री जातीकी क्या ताकातथी जो मन कल्पितपणेसे इतना अनर्थ कर सकती? परंतु कोई सुज्ञ पुछनेवाला ही हमको दिखता नहीं है। । अब इस पाठका अर्थ सर्व जैन महा पुरुषोंकोसम्मत यथार्थ क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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