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हूँढनीजीके-कितनेक, अपूर्ववाक्य. (११) का होना मूल सूत्रोंसेही लिख दिखाती है, और लिखती हैकिपाषाणो पासक-चेइय, शब्दसें. मंदिर, मूर्तिको, ठहरायके, अर्थका अनर्थ करते है. ॥
ऐसा लिखके-फिर दृष्ट. ७७ में-उवाई सूत्रका पाठसें-चेइय, शब्दसें, मंदिर मूर्तिका अर्थ भी करनेको, तैयार हुई है ? ॥
और दृष्ट. १४३ में-स्वामके पाठसें-चेइयं ठयावेइ दव हारिणो मुनी भविस्सइ, लिखके मंदिर, मूर्तिका, अर्थको भी दिखलाती है ।
और एष्ट. ८६ में-ढूंढनीजी लिखती हैकि-मूर्तिका नामचेइय, कहि नहीं लिखा है ।। __ऐसा लिखके-पृष्ट. १०० में-लिखती है कि-चेइय,शब्दका अर्थ, प्रतिमा पूर्वाचार्योने, पक्षपातसें लिखा है ।। • ऐसा कह कर पृष्ट. ११४ में-सम्यक्त्व शल्योद्वारका, चैत्य शब्दसें प्रतिमाका अर्थको, निंदती है ॥
और पृष्ट. ११८ में चेइय, शब्दसें,-प्रतिमाका, अर्थ करने वालेको, हठनादी ठहराती है ॥ १२ ॥
कैसी ढूंढनीजीके लेखमें चातुरी आई है ? ॥
(१३) दृष्ट. १२९ में-ढूंढनीजी लिखती हैकि, सावयाचा. याँने, माल खानेको, निशीथ भाष्यादिकमें, मनमाने गपौडे, लिख धरे है । इत्यादि ॥ १३ ॥ __ढूंढनीजीने, एक सामान्य मात्र-चार निक्षेपका स्वरूपको
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