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সাহাজুল
प्राचीन भारतीय साहित्य उपवन में जैन साहित्य की अपनी एक खास छटा है, सुषमा है, समृद्धि है। दर्शन, न्याय, तर्क, भक्ति, चरित्र, पुराण, कथा, काव्य, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि साहित्य की कोई भी विधा ऐसी नहीं है जिस पर मनीषी जैनाचार्यों की बहु प्रसविनी लेखनी ने चमत्कार नहीं दिखाया हो । प्राचीन जैन वाङमय को देखने से पता चलता है कि विद्वान् आचार्यों ने जिस विषय का भी स्पर्श किया है उसको सर्वाङ्गीण आलोड़न व गम्भीर पर्यालोचन के साथ प्रस्तुत किया है। फिर भी एक शिकायत काफी समय से थी कि जैन आचार्यों ने धर्म व आचार ग्रन्थों पर तो बहुत ही सुन्दर लिखा है किन्तु नीति (ईथिक्स-Ethics) जैसे विषय पर कम लिखा है । सिर्फ दो या तीन ग्रंथों के ही नाम प्रसिद्ध हैं, अतः इस विषय पर कोई प्रामाणिक ग्रन्थ उपलब्ध होना चाहिए जो जैन नीतिशास्त्र को भी समुचित रूप से प्रस्तुत कर सके।
प्राचीन समय में नीतिशास्त्र-धर्म व आचार ग्रन्थों में सम्मिलित था, इस कारण नीति कोई स्वतन्त्र विषय नहीं रहा, किन्तु जब से पाश्चात्य नीतिशास्त्र व मनोविज्ञान का अध्ययन होने लगा है, नीतिशास्त्र एक स्वतन्त्र विषय बन गया है और इसका क्षेत्र भी बहुत व्यापक है।
गुरुदेव पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के विद्वान शिष्य, सैकड़ों पुस्तकों के लेखक उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी से कई बार अनेक विद्वानों ने अनुरोध किया कि आप जैन नीतिशास्त्र पर कोई सर्वांग तुलनात्मक पुस्तक दीजिए। अनेक विश्वविद्यालयों आदि के पाठ्यक्रम में इस प्रकार की पुस्तक का नितान्त अभाव है । आप जैसा समर्थ विद्वान् ही इसकी पूर्ति कर सकता है।
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