________________
४४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
इसी काल में श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित नीति और नतिक प्रत्यय भी समाविष्ट होते हैं ।
यह काल ई० पू० तीसरी सहस्राब्दी से लेकर ई० सन् १२०० तक यानी ४२०० वर्ष का ऐतिहासिक काल है ।
(iii) मध्यकालीन संतों के नैतिक उपदेश और विचार - यह काल ईसा की बारहवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी तक है ।
।
ईसा की बारहवीं शताब्दी से मुसलमानों का भारत में आगमन शुरू हो गया । आक्रामक राजाओं के साथ मुस्लिम सन्त भी आये । राजाओं - मुस्लिम आक्रांताओं के कारण भारतीय राजनीति और युद्धनीति प्रभावित हुई, सन्तों के प्रभाव से सामान्यनीति और यहाँ तक कि धर्म सम्बन्धी मान्यताओं में भी नया मोड़ आया । नये नैतिक प्रत्यय स्थापित हुए । इस युग प्रमुख संतकवि कबीर तुलसी आदि हैं ।
1
(IV) उन्नीसवीं शताब्दी के सुधारकों के नैतिक विचार - यद्यपि ईसाइयों का आगमन भारत में ई० १६०० में ही हो गया था किन्तु इनका प्रभाव भारतीय जन-मानस पर अठारहवीं शताब्दी से पड़ना शुरू हुआ। अंब्र ेजी शिक्षा, अंग्रेजों से सम्पर्क और ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म का प्रचार, हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन आदि ऐसी घटनाएँ थीं, जिनसे भारतीय विचारधारा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए ।
अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कुछ भारतीयों की ऐसी मानसिकता बन गई कि यूरोप की सभ्यता और नैतिकता को वे भारतीयता से श्रेष्ठ समझने लगे । अंग्रेज प्रभुओं की कृपा से यह वर्ग शक्ति सम्पन्न और प्रभावशाली भी था । अतः प्राचीन और मध्यकालीन नैतिक चिन्तनधाराओं को बहुत बड़ा झटका लगा। ऐसा अनुभव होने लगा कि सारा भारत ही यूरोपीयता के रंग में रंग जायेगा ।
इस समय राजा राममोहनराय, जस्टिस रानाडे, स्वामी विवेकानंद, बंकिमचन्द्र चटर्जी, आदि प्रबुद्ध चेता भारतीय मनीषियों का चिन्तन जगा । उन्होंने युग-युगों से चली आई भारतीय नीति के उज्ज्वल तत्वों को पुनर्स्थापित किया और जहाँ तक उन्हें उचित लगा, यूरोपीय नीति के नैतिक तत्वों के साथ भारतीय नीति का समन्वय किया और युगानुकुल नये प्रत्यय निर्धारित किये ।
(v) आधुनिक नैतिक चिन्तन - इसका प्रारम्भ बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों से माना जाता है । बीसवीं शताब्दी विज्ञान की चमत्कारी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org