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परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियां | ५०३
स्वभाव
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग । चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ॥
- रहीम दो० ७६ नीच निचाई नहिं तजै जो पावहिं सत संग । तुलसी चंदन विटप बसि, बिन विस भय न भुजंग ।।
-तुलसी सतसई ६/२१
ज्ञान
हाय हाय तब लग रहै, जब लग बाह्यहु दृष्ट । अन्तर्मुख जब ही भई सब मिटि जाइ अनिष्ट ।
-गिरिधर कुण्ड० १८८
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