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४६२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
क्रोध
कोप न करें महा सहिय, पाय खलन तै दूख । लौन सींचिकर पीडिए, तऊ मधुर रस ऊख ।।
-दीन दयालु, दृष्टान्त तरंगिणी ५१ रिस के बस ना हूजिए, कीजै बात विचार । पुनि पछताए ह्र कहा जो ह्र जाइ विगार।
-ज्ञान ग्रन्थावली
गुण के गाहक सहस नर, बिनु गुण लहै न कोय । जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।।
-गिरिधर कुण्ड० २७
काहूँ सौ न रोष-तोष, काहूँ सों न राग-दोष,
___काहू सों न बैरभाव काहू की न घात है । काहू सों न बकवाद, काहू सों नहीं विषाद,
काहू सों न संग, न तो कोउ पक्षपात है । काहू सों न दुष्ट वैन काहू सों न लैन दैन,
ब्रह्म को विचार, कछु और न सुहात है। 'सुन्दर' कहत सोई ईशन को महाईश, ____सोई गुरुदेव जाकै दूसरी न बात है ।
-सुन्दर ग्रन्थ० पृ० ३८७
तृष्णा
पल-पल छीजे देह यह घटत-घटत घट जाइ। 'सुन्दर' तृष्णा ना घटै दिन-दिन नौं तन खाइ ।।
-सुन्दर ग्रन्थ० पृ० ७१२
दया
यदि मानव तन मध्य है, दयालुता का वास । तो होगा किस धर्म में, उसका नहीं विकास ।।
-हरिऔध; दिव्य दो० ५२२
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