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४७० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
जत्थ य विसयविराओ, कसायचाओ गुणेसु अणुराओ । किरिआसु अप्पमाओ, सो धम्मो सिवसुहो लोएवाओ || - विकारनिरोधकुलक ६ वही धर्म मोक्ष सुख का देने वाला है - जिसमें, (१) विषयों से विराग, (२) कषायों का त्याग, (३) गुणों से अनुराग और (४) क्रियाओं अप्रमाद है ।
जीवों की रक्षा करना, धर्म है ।
जीवाणं रक्खणं धम्मो ।
धम्मो दयाविद्धो ।
धैर्यवान
जिसमें दया की विशुद्धता है, वही धर्म है ।
धम्मविहीणो सोक्खं, तण्हाछेयं जलेण जह रहिदो ।
धर्म के समान दूसरी कोई निधि नहीं है ।
- सन्मतिप्रकरण १/३
जिस प्रकार मनुष्य जल के बिना प्यास नहीं बुझा सकता, उसी प्रकार धर्मविहीन मानव सुख नहीं पा सकता ।
धम्मसमो नत्थि निहि ।
- कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४९८
संघडि घडि विडिय घडंत विघडंत अवहत्थिऊण दिव्वं करेइ धीरो
- बोधपाहुड २५
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- वज्जालग्ग ३६ / ६०-१
संघडिज्जतं ।
समारद्धं ॥
-- वज्जालग्ग ९ / १६
जो पहले साथ था, बना था या बिगड़ गया था और अब जो बन
रहा है या बिगड़ रहा है या साथ दे रहा है, उस भाग्य को छोड़कर धैर्यवान व्यक्ति आरम्भ किये कार्य को अवश्य पूरा करता है ।
निन्दा
जइ इच्छ्ह गुरुयत्त, तिहुयण मज्झम्मि अप्पणो नियमा । सव्वपयत्तणं, परदोसविवज्जणं
ता
कुणह ।। — गुणानुरागकुलकम् १२ यदि तुम सर्वत्र (तीनों लोकों में ) अपनी प्रशंसा और बहुमान चाहते हो तो प्रयत्नपूर्वक परनिन्दा का पूर्णरूप से त्याग कर दो ।
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