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________________ नीतिशास्त्र की पृष्ठभूमि | दूसरों का बुरा चाहता हो; किन्तु उसके कार्य ही परिणाम में कष्टप्रद होते हैं । कभी-कभी अतिसाहस (over-boldness) के कारण भी मनुष्य दुर्नीतिपूर्ण कार्य कर बैठता है । वीरगाथाकाल (cavalry age) के यूरोप का एक ऐसा ही अतिसाहसी व्यक्ति था - डान क्विक्जोट ( Don Quixote) और उसका सहायक था सेंको पांजा ( Sanco Panza ) । डान क्विक्जोट साहस के संवेग में बह जाता था, अतः बुद्धि से काम कम ले पाता था । यूरोप में उस समय तक विद्युत शक्ति का आविष्कार नहीं हुआ था, अनाज पीसने के लिए वहाँ पनचक्कियां ही साधन थे । इन चक्कियों की रचना इस प्रकार की जाती थी - एक लम्बा लकड़ी का लट्ठा गाड़ा जाता था जो छत से काफी ऊपर निकला रहता था । वहां उसमें लकड़ी के दो आड़े तख्ते बाँधे जाते थे । बिलकुल ईसाई धर्म के प्रतीक क्रास (cross ) जैसा आकार होता था इसका । वायु के वेग से ये घूमते तो बेल्ट ( belt) द्वारा सम्बन्धित नीचे कमरे में लगी पुली (pulley) भी घूमने लगती और साथ ही चक्की भी चलने लगती, अनाज पिस जाता । भरपूर वायु मिले और तख्ते तेज गति से घूमें इसलिए ये चक्कियां गाँव से बाहर खुले मैदानों में लगाई जाती थीं । क्विक्जट घोड़े पर सवार एक गाँव के बाहर पहुंचा । उसने दूर से ही तख्ते घूमते देखे तो वह समझा - यह कोई राक्षस है और अपने लम्बे-लम्बे हाथों को घुमा रहा है । उसके मस्तिष्क में विचार दौड़ा - यह राक्षस इस समीप के गांव को नष्ट करने की तैयारी कर रहा है । बस, फिर क्या था, उसने गांववासियों की रक्षा और राक्षस को नष्ट करने का निर्णय कर लिया। सेंको पांजा के समझाने पर भी न माना । म्यान से तलवार निकालकर टूट ही तो पड़ा । परिणाम जो होना था, वही हुआ । लकड़ी के मोटे तख्तों का क्या बिगड़ना था ? हाँ, डॉन क्विक्जोट का अवश्य बिगड़ गया । उसकी तलवार टूट गई। गहरी चोटें आईं। महीनों बिस्तर पर पड़ा रहा। हंसी का पात्र बना । यद्यपि डॉन क्विक्जोट की भावना बुरी नहीं थी; किन्तु संवेगों में बह जाने के कारण उसका कार्य अनुचित तो था ही, मूर्खतापूर्ण भी था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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