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________________ नीतिशास्त्र की पृष्ठभूमि | ५ साहए मइमं । न तं च साहेइ | 2 दूसरा असाध्य । बुद्धिमान क्योंकि असाध्य को साधने भणति सज्झमसज्यं, कज्जं तु अविसज्झं साहेंतो, किलिस्सति कार्य के दो रूप हैं - एक साध्य और व्यक्ति साध्य को ही साधने का प्रयत्न करता है; में व्यर्थ ही समय, शक्ति और श्रम बर्बाद हो जाता है, नहीं प्राप्त होती, अपितु चित्त में क्लेश उत्पन्न होता है, जाता है । 2 इसी बात को आचार्य हेमचन्द्र ने इन दो शब्दों में कहा है'अप्रवृत्तश्च गहिते" और 'जानन् बलाबलम्' अर्थात् किसी भी निन्दनीय कार्य में प्रवृत्ति न करे और अपनी शक्ति - अशक्ति को पहचान कर, अपने सामर्थ्य का विचार करके ही किसी कार्य में प्रवृत्ति करे । फिर भी सफलता सुख चैन नष्ट हो प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिन्सटन ( Elphinstone ) ने इतिहास के सफल व्यक्तियों के चरित्र का विश्लेषण करके सफलता के लिए तीन बातें आवश्यक बताई हैं - १) सही निर्णय ( right decision), (२) सही समय (right time) और (३) सही कदम (ight step ) । निर्णय के प्रेरक तत्व इसलिए कशमकश के दौरान, किसी समस्या के उलझने पर, कहीं विरोध - अवरोध खड़ा होने पर कार्य की साध्यता, अपनी शक्ति और साधन, परिस्थितियों का सही आकलन और विवेचन आदि सभी बातों का विचार करके तथा उचितता ( reasonability ) को दृष्टिबिन्दु में रखकर निर्णय लेना चाहिए । ऐसा निर्णय ही सफलता प्राप्ति में सहायक होता है । किन्तु मानव की विवशता यह है कि वह अपने सभी निर्णय विवेक के आधार पर नहीं लेता, कुछ निर्णयों में कषाय ( passions ) प्रेरक शक्ति बन जाती हैं तो कुछ में ग्रन्थियों (complexes ) की प्रमुख भूमिका होती है । Jain Education International इस प्रकार मानव के कुछ निर्णय विवेक ( reason) के आधार पर तो कुछ कषाय (passions) के आधार पर और कुछ आवेगों (impulses) के आधार पर होते हैं । इन निर्णयों के आधार पर वह वैसे ही कार्य भी करता है । १. निशीथ भाष्य ४१५७ २. योगशास्त्र, १, ४७-५६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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