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________________ नीति को सापेक्षता और निरपेक्षता | ४२७ अतः यह कहा जा सकता है कि जैन नीति की सापेक्षता बड़ी बुराई में से छोटी बुराई को चुनने की अनुमति प्रदान करती है । किन्तु उसके पीछे उद्देश्य पवित्र होना चाहिए, यह अनिवार्य है । राम ने रावण के विरुद्ध युद्ध किया, उसमें लाखों मानवों का संहार हुआ । इस युद्ध का कारण सीता को रावण के फन्दे से मुक्त कराना तो था ही; लेकिन मुख्य उद्देश्य था-स्त्री अपहरणकर्ता को दण्ड देता। पराई स्त्री का अपहरण बड़ी बुराई है, घोर अनैतिकता है, इस अनैतिकता को रोकने के लिए श्रीराम ने रावण से युद्ध किया। जिसे पुराणों में धर्मयुद्ध कहा गया है। ऐसी ही स्थिति वैशाली गणतन्त्र के राजा चेटक के समक्ष आ गई थी। उन्हीं के नवासे कणीक ने अपने सगे भाइयों-हल्ल विहल्ल से उनके पिता द्वारा प्रदत्त हार और हाथी को छीनना/अपहरण करना चाहा । हल्ल विहल्ल भागकर नाना चेटक की शरण में चले गये । आखिर अपहरणकर्ता कूणीक के विरुद्ध राजा चेटक को युद्ध का निर्णय लेना पड़ा । उनका भी यह निर्णय नैतिक था। इसी प्रकार दुर्योधन ने अपने अभिमान और हठ के कारण पांडवों पर युद्ध थोप दिया। आखिर पांडवों ने युद्ध किया। उनका पक्ष नैतिक होने के कारण उनकी विजय हुई। __ नैतिक सापेक्षता ऐसा प्रत्यय है जो मानव जीवन में आवश्यक है। श्री अरविन्द घोष के विचार इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय हैं। उन्होंने अपनी योग मिश्रित आध्यात्मिक भाषा में इसे नीति का मानक और आध्यात्मिक स्वतन्त्रता (Moral Standard and Spiritual Freedom) का नियम कहा है। .. इस नियम का स्पष्टीकरण इन शब्दों में किया जा सकता है। नैतिक मानक (St: ndard) मानव मानस की सृष्टि है जो अज्ञान (Ignorance) के नियम से परिचालित होता है। मानव का मानस अहं (Ego) बुद्धि से परिचालित होता है। अतः मानव की नीति का मानक सर्वप्रथम समाज की रीति (Customs of folklore of society) होता है। तत्पश्चात् यह मनुष्य के अन्तःकरण का आत्मगत आदेश अथवा विधि होता है। इसके पश्चात् यह मनुष्य की व्यक्तिगत बुद्धि का निरपेक्ष आदेश Categorical imperative) होता है। परन्तु यह भी मनुष्य मन की सृष्टि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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