SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन नीति और नैतिक वाद | ३९७ प्राणी मात्र को अपने समान ही समझता है और सब को सुखी देखना चाहता है। - गांधीवादी नीतिदर्शन-इसके प्रवर्तक मोहनदास कर्मचन्द गाँधी (१८६६-१६४८) हैं; जिनका सर्व प्रचलित नाम महात्मा गांधी है। यह एक राजनीतिक संत हैं। इनकी विशेषता यह है कि इनकी नीति पर चलकर ही सदियों से परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा भारत देश स्वतन्त्र हुआ और वह भी अहिंसात्मक प्रतिरोध से । अहिंसा इनका जीवन दर्शन है, आचार है, विचार है और सब कुछ (all-in-all) है। सत्य इनका साध्य रहा। __ इनकी विशेषता थी कि ये साध्य के साथ साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते थे । अनुचित साधनों से उचित साध्य की प्राप्ति भी इनको इष्ट नहीं थी। इनकी नीति के आधार सत्य और अहिंसा थे तथा लक्ष्य था-सवदय । सर्वोदय का अभिप्राय है-सबकी उन्नति, भौतिक भी, आध्यात्मिक भी और चारित्रिक भी। इनकी भाषा में अहिंसा सभी सद्गुणों का पूजीभूत रूप है। इन्होंने ११ नीति-नियमों का निर्माण किया-(१) सत्य (२) अहिंसा (३) अस्तेय (४) शरीरश्रम (५) ब्रह्मचर्य (६) असंग्रह (अपरिग्रह) (७) अस्वाद (८) सर्वत्र भय वर्जन (अभय) (६) सर्व धर्म समानता (१०) स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना और (११) छूआछूत न मानना। __इनमें से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तो जैन नीतिसम्मत पाँच अणवत ही हैं। शरीरश्रम, अस्वाद आदि जैन नोति के व्यावहारिक बिन्दु हैं । स्वदेशी व्रत देश की आर्थिक समृद्धि का हेतु है और छूआछूत न मानना मानव, मानव की भेद रेखा समाप्त करता है। जहाँ तक छुआछूत अथवा जातिवाद का सम्बन्ध है, जैन दर्शन भी जातिवाद को नहीं मानता। उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा गया है कि जाति की कोई विशेषता नहीं है । यह स्पष्ट है कि गाँधीजी के जीवन पर जैन धर्म का गहरा प्रभाव रहा है। यद्यपि उन पर गीता का भी विशिष्ट प्रभाव था और वह उनकी प्रिय पुस्तक रही किन्तु साथ ही रस्किन के Unto this Last का भी उन पर प्रभाव था । यह जैन धर्म का ही प्रभाव था कि अहिंसा उनकी रग-रग में समा गई थी और यह उनका जीवन, आचार, धर्म सब कुछ बन गई। ___ गाँधी जी ने नीति के सर्वोच्च साधनों में सत्य और अहिंसा को ही १ न दीसई जाइविसेस कोइ । -उत्तराध्ययन सूत्र १२/७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy