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जैन नीति का आधार : सम्यग्दर्शन (RIGHT FAITH : BASE OF JAINA ETHICS)
सम्यग्दर्शन का अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यक्त्व और सम्यग्दृष्टि-ये तीनों शब्द एकार्थवाची हैं । नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन का अर्थ हैसत्यदृष्टि, यथार्थदृष्टि । सामान्य शब्दों में इसे 'उचितता, यथार्थता,' भी कहा जा सकता है । सम्यक्त्व का अर्थ तत्वरुचि भी है। नीतिशास्त्र की दृष्टि से यह अर्थ अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस अर्थ से 'सत्य की अभिरुचि' यह अभिप्राय द्योतित होता है।
यों सत्यदृष्टि तथा सत्य की ओर अभिरुचि-सम्यक्त्व के ये दोनों ही अभिप्राय नीति के मूल आधार हैं ।
यहाँ यह प्रश्न होता है कि यथार्थदृष्टि अथवा सत्यदृष्टि क्या है ? और साथ ही आनुषंगिक प्रश्न यह भी है कि क्या दृष्टि अयथार्थ भी होती है ? और यदि वह होती है तो उसका नाम और लक्षण क्या है, जिसको त्यागने से सत्यदृष्टि की उपलब्धि होती है।
जैन परम्परा में अयथार्थ दृष्टि को मिथ्यात्व अथवा मिथ्यादृष्टि कहा गया है।
१ अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग ५ २ (क) बौद्धदर्शन में भी मिथ्यात्व कहा गया है, देखिए अंगुत्तरनिकाय १/१०-२० (ख) गीता में अज्ञान कहा है । द्रष्टव्य गीता ५/१४-१५, १४-८, १६-१०,
१६/१५, १८/२२ आदि
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