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अपना अधिक समय बर्बाद न करे, उचित समय पर पाठ पढ़े । '
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन आदि अनेक प्रकार की नैतिकताओं का मानव जीवन में समावेश हो जाता है और यह उसे जीवन भर नैतिक बनाये रखती हैं क्योंकि इस अवस्था के संस्कार स्थायी रूप से सम्पूर्ण जीवन में रहते हैं ।
गृहस्थ का यह नैतिक दायित्व है कि वह अतिथि का सत्कार करे, दान दे, समाज में अपना व्यवहार उचित बनाए रखे, पुत्र-पुत्रियों को योग्य शिक्षा दिलवाये, माता-पिता वृद्धजनों की सेवा करे तथा अन्य समाज सेवा के कार्य करे | 2
नैतिक प्रत्यय | १२३
इसी प्रकार अन्य आश्रमों के भी विशिष्ट नैतिक कर्तव्य हैं जो नीतिशास्त्र की दृष्टि से नैतिक प्रत्ययों के रूप में मानव के दैनंदिन व्यवहार को प्रभावित और संचालित करते हैं ।
त्रि ऋण विचार
नीतिशास्त्र में ऋण प्रत्यय का अभिप्राय है - ईमानदारी से कुछ ऐसे कर्तव्यों को सम्पन्न करना, जो नैतिक दृष्टि से अनिवार्य हैं ।
शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि मानव (१) देव ऋण, (२) ऋषि ऋण और, (३) पितृ ऋण से दबा होता है, यानी इन तीनों का उस पर भार होता है और उसका नैतिक कर्तव्य है कि इन ऋणों से मुक्त होवे ।
वहाँ इन ऋणों को चुकाने की विधि भी बताई गई है । देवऋण यज्ञ आदि से, ऋषिऋण विद्या पढ़ने से और पितृऋण ( इसी में समाज - ऋण भी सन्निहित है ) पुत्र उत्पन्न करने, समाज सेवा, सहायता, दान, त्याग आदि करने से उतरता है ।
भगवान महावीर ने भी ( १ ) माता-पिता, (२) स्वामी ( पोषक ) और (३) धर्माचार्य का ऋण मानव पर बताया है; किन्तु इन तीनों ऋणों
९ मा य चंडालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । काले म अहिज्जित्ता"
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२ (क) आचार्य हेमचन्द्र : योगशास्त्र, १।४७-५६
(ख) जैन धर्म की हजार शिक्षायें : मधुकर मुनि, पृ० १०७-१०८
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- उत्तरा० १।१०
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