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________________ उचित (राइट) है। वही कर्म नैतिक है जो उचित के बोध से किया गया हो अथवा नैतिक बाध्यतावश या कर्तव्य की चेतना से प्रेरित होकर किया गया हो। कर्तव्य और औचित्य समानार्थी हैं। कर्तव्य करना ही उचित है और उचित करना ही कर्तव्य है। कर्तव्य और उचित को महत्त्व देकर नीतिशास्त्र यह संकेत करता है कि मानवीय दुर्बलताएं मनुष्य को अनैतिक मार्ग की ओर खींचती हैं। किन्तु उसे नैतिक ज्ञान और दृढ़ संकल्प की सहायता से उस मार्ग को अपना लेना चाहिए जो नैतिक और शुभ है। स्वेच्छित कर्म करनेवाले बौद्धिक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह सदैव उचित को अपनाये । कर्तव्य और नैतिक बाध्यता-कुछ लोग कर्तव्य और बाध्यता में भेद देखते हैं और कहते हैं कि बाध्यता कानून अथवा समझौते की उपज है। वे बाध्यता और कर्तव्य में भेद देखते हैं। बाध्यता वह है जिससे कि व्यक्ति निश्चित बोध और समझौते द्वारा कर्म करने के लिए बद्ध हो जाता है । कर्तव्य वह है जो कि एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति देय है, क्योंकि मनुष्य मूलतः एक नैतिक और सामाजिक प्राणी है। कर्तव्य और बाध्यता का वणित भेद नैतिक दृष्टि से व्यर्थ है । नीतिशास्त्र में कर्तव्य और बाध्यता पर्यायवाची हैं। दोनों से ही अभिप्राय उससे है जिसे मनुष्य की बुद्धि उसके लिए अनिवार्य मानती है। उसकी वास्तविक आत्मा उसे विशिष्ट प्रकार से कर्म करने के लिए बाध्य करती है। सब कर्तव्य अनिवार्य हैं एवं नैतिक मनुष्य उन्हें करने के लिए बाध्य है । नैतिक जीवन में कर्तव्य के बोध एवं नैतिक बाध्यता के बोध का प्रमुख स्थान है। नैतिक बाध्यता मनुष्य के उस नियम के प्रति सचेत सम्बन्ध को प्रकट करती है जिसे कि वह विशिष्ट परिस्थितियों में पालन करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समझता है और जिसका पालन करना उसके लिए. सम्भव है। ऐसे नियम का पालन करना व्यक्ति का कर्तव्य है। ____ कर्तव्य और नैतिक बाध्यता व्यक्ति के चंचल और दोलायमान तथा आवेग-पूर्ण स्वभाव के सूचक हैं । मनुष्य सहज ही निम्न प्रवृत्तियों के प्रवाह में बह जाता है। उनसे ऊपर उठना एवं शुभ के मार्ग को ग्रहण करना उसका कर्तव्य है । यही नैतिक बाध्यता है। नीतिशास्त्र वह विज्ञान है जो कि नैतिक ध्येय के प्रति व्यक्ति को सचेत और जागरूक रखता है ताकि वह समझ-बूझकर ध्येय के मार्ग पर चल सके। इस अर्थ में कर्तव्य के नियम बाह्य सत्ता द्वारा निर्धारित किये हुए नहीं हैं । वे आत्म-आरोपित हैं । कर्तव्य के निरपेक्ष आदेश नतिक प्रत्यय / ७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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