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________________ सफलतापूर्वक पालन कर लेता है वह सम्यक् समाधि में प्रवेश पा सकता 2 सम्यक् समाधिचित्त की एकाग्रता है, चित्त वृत्तियों का शान्त हो जाना है | इसके अन्तर्गत चार अवस्थाएँ हैं : ( १ ) पहली अवस्था में शान्त मन से चार श्रार्य सत्यों पर मनन, चिन्तन और तर्क करते हैं । विरक्त और शुद्ध विचारों के कारण अपूर्व श्रानन्द प्राप्त होता है । ( २ ) दूसरी अवस्था में सन्देह का विनाश हो जाने के कारण तर्क-वितर्क अनावश्यक हो जाते हैं । आर्य सत्यों के प्रति श्रद्धा दृढ़ हो जाती है तथा प्रानन्द और शान्ति का बोध होता है । ( ३ ) यह अवस्था तटस्थता की अवस्था है । शांति और आनन्द से मन को तटस्थ करके चित्त की साम्यावस्था स्थापित की जाती है । इस स्थिति में चित्त की साम्यावस्था के साथ दैहिक विश्राम का भाव तो रहता है किन्तु समाधि के श्रानन्द के प्रति तटस्थता एवं उदासीनता रहती है । ( ४ ) चतुर्थ अवस्था में समाधि के श्रानन्द, चित्त की साम्यावस्था, दैहिक विश्राम, किसी का भी बोध नहीं रहता है । वह पूर्ण शान्ति, पूर्ण विराग तथा पूर्ण संयम की अवस्था है । इसमें न सुख है, न दुख है, यह दोनों से रहित है । यह पूर्ण प्रज्ञा, पूर्ण शील, पूर्ण समाधि है । अष्टांग मार्ग के तीन मुख्य अंग ( त्रिरत्न ) हैं - प्रज्ञा, शील और समाधि । बुद्ध के लिए ज्ञान और शील एक ही हैं । अष्टांग मार्ग का प्रथम नियम एवं सोपान सम्यक् दृष्टि है, ग्रार्य सत्यों का ज्ञान है । इस ज्ञान का विरोध कुसंस्कारों – मन, वचन, कर्म के कुसंस्कारों से होता है । परिणामस्वरूप नैतिकता, शुभ आचरण एवं अष्टांग मार्ग के सोपानों की ओर जब हम बढ़ते हैं तो श्रन्तर्द्वन्द्व अनिवार्य हो जाता है । इस प्रन्तर्द्वन्द्व की समाप्ति के लिए श्रावश्यक है कि सम्यक् संकल्प से लेकर सम्यक् समाधि तक के सात नियमों का निरन्तर अनुशीलन और अभ्यास करें। सभी बाधाओं के दूर होने पर सम्यक् समाधि की अन्तिम अवस्था प्राप्त हो जाती है तथा प्रज्ञा का उदय होता है । प्रज्ञा अविद्या, तृष्णा एवं जरा-मरण का मूलोच्छेदन कर देती है । दुःखों का निरोध हो जाता है। निर्वाण या अर्हत पद की प्राप्ति के साथ ही पूर्ण प्रज्ञा, पूर्ण शील, पूर्ण शान्ति का उदय हो जाता है । ३७० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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