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________________ वे (६) क्या होते हैं ? मृत्यु तात्त्विक प्रश्नों के प्रति मौन - बुद्ध का दर्शन व्यावहारिक और नैतिक है । दुःख को दूर करना चाहते थे इसलिए वे तात्त्विक समस्याओं के प्रति उदा-सीन रहे । उनका कहना था कि पहले व्यावहारिक समस्या को सुलझाना के चाहिए, दुख का निवारण करना चाहिए । इस दृष्टि से पोठपाद सुत्त अनुसार, बुद्ध ने दस प्रश्नों को अव्याकृत ( अव्यक्तानि ) कहा है । ( १ ) क्या यह लोक सनातन है ? ( २ ) क्या यह अनित्य है ? (३) क्या यह अनन्त है ? ( ४ ) क्या यह शान्त है ? (५) क्या आत्मा और शरीर एक हैं ? आत्मा और शरीर भिन्न हैं ? ( ७ ) क्या मृत्यु के बाद तथागत ( ८ ) क्या मृत्यु के बाद तथागत नहीं होते हैं ? ( 8 ) क्या वे के बाद होते और नहीं भी होते हैं ? (१०) क्या वे न तो अमर होते हैं और न मरणशील. ही ? इन दस प्रश्नों का समाधान न सम्भव है और न व्यावहारिक दृष्टि से प्रगति है । जीवन की ज्वलन्त समस्या दुःख की समस्या है । इन प्रश्नों द्वारा हम दुःख का निरोध नहीं कर सकते, दु:ख निरोध के मार्ग को नहीं जान सकते। ऐसा प्रयास वैसा ही होगा जैसा कि यदि किसी को बाण बेध दे तो वह तब तक बाण निकलवाना मना कर दे जब तक कि वह बाण और धनुष को न जान ले, बेधनेवाले पुरुष को न जान ले आदि । यह जिज्ञासा, हठ या प्रश्न अव्याकृत रह जायेंगे क्योंकि तब तक शल्य से बिंधा व्यक्ति मर जायेगा । इसीलिए जब बुद्ध के शिष्यों ने उनसे तात्त्विक एवं दार्शनिक प्रश्न किये वे मौन रहे क्योंकि नैतिक और व्यावहारिक दृष्टि से आध्यात्मिक समस्याएँ अनुपयोगी तथा निरर्थक हैं । बुद्ध का मुख्य उद्देश्य दुःख निरोध के मार्ग को समझना था क्योंकि यही हमें दुःख से मुक्ति दे सकता है, निर्वाण एवं पूर्ण आनन्द प्रदान कर सकता है। प्रथम आर्य सत्य - बुद्ध ने माना कि जीवन दुःखपूर्ण है, सब कुछ दुःख है । अतः उन्होंने दुःख के विश्वव्यापी स्वरूप पर प्रकाश डाला। बुढ़ापा, मृत्यु, रोग ही दुःख नहीं हैं वरन् समस्त संसार दुःखपूर्ण है । किन्तु दुःख को देखकर बुद्ध ने निराशावादी दृष्टिकोण स्वीकार नहीं किया । उन्होंने इसे दूर करने की आवश्यकता को महत्त्व दिया अथवा उनका कहना था कि मनुष्य दुःख से मुक्ति पा सकता है । द्वितीय श्रार्य सत्य - द्वितीय आर्य सत्य बतलाता है कि कुछ भी प्रकारण उत्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि प्रतीत्यसमुत्पाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु अपनी उत्पत्ति के लिए अपने कारण पर निर्भर है । सर्वत्र दुःख है और दुःख का मूल ३६६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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