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________________ २६ जन नीतिशास्त्र शब्द विज्ञान के अनुसार अर्थ-शब्द विज्ञान के अनुसार जैन शब्द की व्युत्पत्ति 'जिन' से हुई है और यह अध्यात्मविजयी की प्रकृति को इंगित करता है। 'जिन' वह है जिसने राग-द्वेष पर विजय प्राप्त कर ली है, जिसने कठोर आत्म-संयम एवं साधना द्वारा अपने सच्चे स्वरूप को प्राप्त कर लिया है; वह मुक्त, सिद्ध, सर्वज्ञ और सार्वशक्तिमान है; वह सांसारिक बातों के प्रति तटस्थ है । जिन एवं तीर्थंकर (पथ के निर्माता) की ही जैनी उपासना करते हैं । जैन धर्म यात्म-प्रयास, आत्म-निर्भरता में विश्वास करता है, यह दया या अनुकम्पा को महत्त्व नहीं देता है। इसलिए वह मानता है कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक को स्वयं प्रयास करना होगा एवं तीर्थंकरों द्वारा निर्देशित मार्ग का पालन करना होगा। तीर्थकर-रूढ़िवादी जैनियों के अनुसार जैन धर्म शाश्वत है तथा समयसमय पर तीर्थंकरों ने इसे उद्घाटित किया है। जैनी चौबीस तीर्थंकरों को मानते हैं। यह माना जाता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे और अन्तिम अथवा चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्ध मान या महावीर । पार्श्वनाथ इस परम्परा के तेईसवें तीर्थंकर माने जाते हैं। महावीर का जन्म ५६६ ई० पू० में हुअा।' प्रारम्भ में उन्होंने गार्हस्थ जीवन व्यतीत किया । तीस वर्ष की आयु में उन्होंने प्राध्या १. देह-त्याग ५२७ ई० पू० २. जैन धर्म के अन्तर्गत दो सम्प्रदाय हैं । श्वेताम्बर और दिगम्बर । श्वेताम्बर मानते हैं कि महावीर विवाहित थे, दिगम्बर उन्हें अविवाहित मानते हैं। साथ ही इन सम्प्रदायों में आचार-विचार सम्बन्धी कुछ बातों को लेकर मतभेद है । इस दृष्टि से दिगम्बरों का आचरण सम्बन्धी विधान श्वेताम्बरों से अधिक कठोर है । ३६० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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