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ओर तो गीता हमें अनैतिक कर्मों के गर्त में गिरने से बचाती है और दूसरी ओर हमारे अन्दर उत्तरदायित्व और प्रात्मश्रेष्ठता के भाव को जगाती है।
पालोचना मार्गनिर्देशन-गीता ने यह भलीभांति समझाया कि आचरण की समस्या आत्म-प्रबुद्ध प्राणी के लिए मुख्य समस्या है । व्यक्ति केवल जैव आवश्यकताओं का प्राणी नहीं। वह पशु-जीवन को अपनाकर सुखी नहीं रह सकता । वह प्राध्यात्मिक प्राणी है, वह जीवन के अर्थ और मूल्य को जानना चाहता है। उसके कर्म विवेक से संचालित होने चाहिए। अतः गीता ने नैतिक समस्या को तत्त्वदर्शन पर आधारित किया। जीवन के आदर्श को तत्त्वदर्शन की पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है। नैतिक समस्या को एक मूर्त रूप देने के लिए ही गीताकार ने एक विशिष्ट स्थिति को लिया और उस स्थिति के आधार पर समझाया कि मानसिक द्वन्द्व एवं नैतिक समस्या को कैसे सुलझा सकते हैं। वार्तालाप की सरल शैली को अपनाकर नैतिक सन्देश को जनसामान्य के लिए
आकर्षक और ग्रहणीय बना दिया। ____ संसार में भलीभाँति रहने के लिए अधिकांश व्यक्तियों को मार्ग निर्देशन की आवश्यकता होती है । अविकसित बुद्धि के कारण अथवा आवेगजन्य प्रवृत्ति तथा स्वार्थान्ध होने के कारण मनुष्य की नैतिक बुद्धि मन्द पड़ जाती है। वे कर्म के औचित्य-अनौचित्य पर विचार नहीं करते। गीता ने सदाचार को दृढ़ दार्शनिक सम्बल देकर तथा कर्मवाद को स्वीकार करके ऐसे अनैतिक प्राणियों को चेतावनी दी है। नैतिक जिज्ञासुओं को मूलगत नैतिक तत्त्वों की ओर आकर्षित किया है। प्राचारण के व्यापक नियमों की संहिता असम्भव है अत: गीता ने संहिता देने का प्रयास नहीं किया । फिर भी यह सत्य है कि अपने समय की सामाजिक स्थिति की उपेक्षा कोई भी नैतिक सिद्धान्त नहीं कर सकता अतः गीता भी इससे अछती नहीं है। इसलिए आज के नीतिज्ञ के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि आज की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के आधार पर गीता की पुनर्व्याख्या करे । ___फलासक्ति अनुचित-लोकमंगल को महत्त्व देने के कारण ही गीता ने यह समझाया है कि फलासक्ति की इच्छा से कर्म नहीं करने चाहिए। जो मनुष्य परिणाम पर विचार करते हैं वे अधिकतर कर्तव्यभ्रष्ट हो जाते हैं। स्वार्थ एवं सुखभोग की कामना विवेक को अज्ञान से आच्छादित कर देती है।
गीता | ३४३
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