SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म-मनुष्य सामाजिक प्राणी है अथवा व्यक्ति और समाज परस्पर सम्बन्धित हैं । सामाजिक जीवन धर्म की अपेक्षा रखता है । धर्म आचरण अथवा नैतिकता के मापदण्ड को निर्धारित करता है। बिना धर्म के अर्थ और काम की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। धर्म मनुष्य के लिए सभी कालों में आवश्यक हैमनुष्य ने धर्म का सदैव किसी न किसी रूप में पालन किया भी है। धर्म ही नैतिक और पारलौकिक अथवा दिव्य आनन्द का दायक है। अतः मनुष्य को, अपने लक्ष्य के रूप में, धर्म को अंगीकार करना ही होगा। मोक्ष-सांसारिक जीवन दुखपूर्ण है, यह मनुष्य को बन्धन में डालता है । सांसारिक बन्धन से मुक्ति प्राप्त करना परम पुरुषार्थ है । अतः मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्त करना मानवजीवन का एकमात्र लक्ष्य है। अविद्या, अविवेक, माया-मोह, आसक्ति, अहंकार आदि के कारण मनुष्य अपनी वास्तविकता-अपने सच्चे स्वरूप-को भूल जाता है और भवचक्र में पड़ जाता है। पर यह मनुष्य की स्थायी स्थिति–नियति-नहीं है। नैतिक-आध्यात्मिक आचरण और जीवन को अपनाकर वह अपने सच्चे स्वरूप एवं मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। सभी भारतीय आध्यात्मिक दार्शनिकों, मनीषियों, ऋषियों, दष्टानों ने मोक्ष को स्वीकार किया है यद्यपि मोक्ष के स्वरूप के बारे में उनमें मतैक्य नहीं है । जैव, बौद्ध, सांख्य, न्याय-वैशेषिक, अद्वैत वेदान्त आदि ने अपने मूल सिद्धान्त के अनुरूप ही मोक्ष की व्याख्या की है। ३२६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy