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________________ और बाह्य मूल्य' परम मूल्य और निमित्त मूल्य', तथा स्थायी मूल्य और अस्थायी मूल्य एवं साध्यगत मूल्य और साधनगत मूल्य का है । समस्त व्यवहार का मूल्य, जिससे कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है, साधनगत मूल्य है। नैतिकता का सम्बन्ध साध्यगत मूल्य एवं परम मूल्य से है । वह वस्तु, जो अपने-आपमें शुभ है, परम मूल्य रखती है। सभी सुखद वस्तुएं, अथवा वे वस्तुएँ जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्य को सन्तोष देती हैं, व्यावहारिक मूल्य रखती हैं। सन्तोष के विषयों का मूल्य उनकी उपयोगिता पर निर्भर है। नैतिक मूल्यवाद यह मानता है कि वस्तुएँ कभी भी केवल इस कारण नैतिक रूप से शुभ नहीं होती कि वे सन्तोष या श्लाघा का विषय हैं। इस तथ्य को मानना कि वस्तुएँ नैतिक रूप से शुभ इसलिए हैं कि वे सुखप्रद हैं, प्राकृतिक हेत्वाभास है। इसमें सन्देह नहीं कि प्रतिदिन के सामान्य वार्तालाप में उन वस्तुओं और विषयों को शुभ कहते हैं जो कि व्याख्या करनेवाले को सन्तोष देते हैं अथवा जो उसकी दृष्टि में श्लाघनीय हैं, किन्तु मात्र श्लाघा और सन्तोष के विषयों को हम नैतिक मूल्य नहीं प्रदान कर सकते। अर्बन द्वारा मूल्यों का विश्लेषण-अर्बन ने मूल्यों को दो वर्गों में विभाजित किया है : जैविक (Organic) तथा अति-जैविक (Hyper-organic) । पुनः जैविक मल्यो के अन्तर्गत उन्होंने तीन प्रकार के मूल्यों की चर्चा की है : दैहिक आर्थिक तथा मनोरंजन के मूल्य । अति-जैविक के अन्तर्गत उन्होंने सामाजिक तथा प्राध्यात्मिक मल्यों को माना है। सामाजिक मूल्य के अन्तर्गत साहचर्य-सम्बन्धी तथा चरित्र-सम्बन्धी (चारित्रिक) मूल्य आते हैं। आध्यात्मिक मूल्य बौद्धिक, सौन्दर्यपरक तथा धार्मिक मूल्यों का समावेश करता है । वैसे, सभी मूल्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-साधननत मूल्य और साध्यगत मूल्य । स्पष्ट ही, नैतिकता साध्यगत मूल्य को महत्त्व देती है, वह परम साध्य को प्राप्त करना चाहती है। __ मूल्यों के विभिन्न स्तर-जो व्यक्ति मूल्य को महत्त्व देता है उसके लिए अपने-आपमें कोई भी कर्म भला या बुरा नहीं है। वही नियम और कर्म अच्छे हैं जो सर्वोच्च मूल्य की प्राप्ति में सहायक हैं । किन्तु सर्वोच्च मूल्य को विकसित 1. Intrinsic value and Extrinsic value. 2. Absolute value and Instrumental value. 3. Permanent value and Transient value. मूल्यवाद | २८१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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