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________________ उतने ही वस्तुगत और नित्य हैं जितने कि विज्ञान के विचार । शुभ और अशुभ की विभक्तियों की वस्तुगत सत्ता को बुद्धि द्वारा उसी भाँति समझाया जा सकता है जिस प्रकार देश और संख्या के सम्बन्धों को । नैतिक प्रत्ययों के स्वरूप और वस्तुगत श्रेष्ठता को केवल बुद्धि से ही समझ सकते हैं यद्यपि यह सच है कि नैतिक विभक्तियों का ज्ञान मनुष्य के मानस में दिव्य मानस से आता अन्तर्बोध और शुभ का आचरण-कडवर्थ का यह भी कहना है कि आचरण को निर्देशित करने के लिए हमें किसी बाह्य शक्ति की सहायता नहीं लेनी होती है। मनुष्य का बोध सहज रूप से उन नैतिक सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है जो शाश्वत, नित्य और अनिवार्य हैं; जो सार्वभौम और स्वतःसिद्ध हैं। नैतिक सिद्धान्त या प्रमेय बौद्धिक प्राणियों के आचरण को निर्देशित करने के लिए उतनी ही अपरिवर्तनशील प्रामाणिकता रखते हैं जितनी कि रेखागणित के सत्य । कडवर्थ का कहना है कि मनुष्य के पास एक विशिष्ट गुण अथवा नैतिक शक्ति एवं अन्तर्बोध है जिसका स्वरूप बौद्धिक है। इसके निर्णय प्रत्यक्ष और परम होते हैं। व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह इस शक्ति को विकसित करने के लिए प्रयास करे। इस शक्ति के विकास पर ही नैतिक प्रगति निर्भर है। उचित आचरण उचित निर्णय पर निर्भर है और उचित निर्णय के लिए नैतिक सिद्धान्तों के सम्यक् ज्ञान की पूर्व सत्ता आवश्यक है। अज्ञान के कारण ही हम अनैतिक आचरण को अपनाते हैं। यदि हम नैतिक सिद्धान्त का उचित ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ हैं तो हमें चाहिए कि शुभ चरित्र के बौद्धिक व्यक्तित्व के लोगों के ज्ञान से लाभ उठायें। बुद्धिवादी सहजज्ञानवाद का पालोचनात्मक मूल्यांकन हॉब्स के स्वार्थवाद पर असफल प्राघात-बुद्धिवादी सहजज्ञानवादियों ने हॉन्स के विरुद्ध यह समझाने का प्रयास किया कि उचित-अनुचित की धारणाएँ शाश्वत हैं। हॉब्स ने एक ओर तो यह माना कि प्रकृति के नियम नित्य और शाश्वत हैं और दूसरी ओर मानव-स्वभाव की स्वार्थ-मूलक व्याख्या करते हुए यह कहा कि स्वार्थ की सिद्धि के लिए अत्युत्तम साधन यह है कि व्यक्ति समझौते के नियमों का पालन करे। हॉब्स के इस कथन में जो सत्य है हम उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते । किन्तु बुद्धिवादियों ने अपनी आलोचना के आवेश में यह कह दिया कि हॉब्स के अनुसार शुभ और अशुभ के भेद को मनुष्य २४८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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