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है । वैधिक नियम के अर्थ को समझने और उसके अनुसार विभिन्न नियमों का मूल्यांकन करने की शक्ति ही अन्तर्बोध है । यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को इतनी सूझ तथा दूरदर्शिता दे देती है कि वह बाह्य रूप से अपने आचरण को इस भाँति नियमित कर लेता है कि वह कानून के अनुकूल हो जाता है । किन्तु ऐसी शक्ति एवं अन्तर्बोध नैतिक मूल्यरहित है। यह बाह्य आरोपित नियम का पालन दण्ड के भय एवं पुरस्कार के लालच से करवाता है । यह व्यक्ति की सदसत् बुद्धि को दण्ड का भय दिखलाकर चुप कर देता है।
धर्म-धार्मिक विचारकों ने अन्तर्बोध को अधिकतर दिव्यवाणी या अन्तरआत्मा की ध्वनि कहा है । वे इसे भगवत्-प्रेरणा के रूप में स्वीकार करते हैं, भगवत्-प्रेरणा अथवा अन्तःप्रेरणा से उचित-अनुचित के परम निर्णय प्राप्त होते हैं। धर्म यह भी मानता है कि ईश्वर न्यायशील है। उसके निमित विश्व में श्रेय के नियमों का एक विधान है। उसने प्रत्येक व्यक्ति को इस विधान को समझने की शक्ति या अन्तःप्रेरणा दी है । अथवा धर्म के अनुसार विश्व में सार्वभौम नियमों का एक विधान है । आन्तर्बोध द्वारा व्यक्ति इस विधान के नियमों को समझ सकता है । वही व्यक्ति श्रेष्ठ है जिसमें इन नियमों का पालन करने के लिए पवित्र एवं सत्य प्रेरणा होती है । यदि व्यक्ति इन नियमों को समझने अथवा पालन करने में कठिनाई अनुभव करता है और उसके आधार पर विशिष्ट कर्तव्यों को निर्धारित नहीं कर पाता तो उसे चाहिए कि वह धर्मशास्त्रियों, पण्डितों, श्रुतिमर्मज्ञों, देवज्ञान अथवा प्रतिष्ठित धार्मिक पुस्तकों की सहायता ले । धर्म के नियम निश्चित नियम हैं । ऐसे निश्चित नियमों का बुद्धि आविष्कार नहीं करती वरन् दिव्य आदेश उसके कर्मों को निर्धारित करता है । दिव्य आदेश को हम आन्तरिक आदेश नहीं कह सकते हैं । यह आदेश बाह्य आदेश है और जिसे दिव्य वाणी अथवा अन्तरात्मा की ध्वनि कहते हैं वह व्यक्ति -महापुरुषों का अपवाद मानकर-के धार्मिक संस्कार हैं । जिस पवित्र प्रेरणा से वह कर्म करता है वह आगामी अधिक सुखी जीवन अथवा पुनर्जन्म में स्वर्ग की आकांक्षा है । जनसामान्य के सदाचार के मूल में यह भय है कि न्यायशील सृष्टिकर्ता अन्यायी को दण्ड देगा।
सुखवाद-स्वार्थसुखवादियों के अनुसार व्यावसायिक बुद्धि का ही नाम अन्तर्बोध है । वे यह नहीं मानते कि मनुष्य में उचित-अनुचित को समझने की कोई आन्तरिक शक्ति है । उनका यह कहना है कि जीवन का ध्येय आत्मसुख है । उसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य को व्यावसायिक बुद्धि एवं दूरदर्शिता से काम
२४० / नीतिशास्त्र
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