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न होगा कि 'प्रत्येक व्यक्ति की गणना एक है' और 'प्रत्येक व्यक्ति में मनुष्यत्व की पवित्रता है, इन दोनों कथनों ने समान रूप से आधुनिक तथा विगत शताब्दी के समाजशास्त्रियों, सुधारकों, राजनीतिज्ञों और कानून- विशेषज्ञों को प्रभावित किया । इस व्यावहारिक देन के अतिरिक्त बुद्विपरतावादियों ने इस जीवन्त सत्य की ओर भी संकेत किया कि अभ्यास और प्रवृत्तियाँ कर्तव्य के मार्ग में रोड़ा अटकाती हैं । उनका यह कथन सत्य - विहीन नहीं है । इसमें निहित सत्यांश की पुष्टि के लिए इतिहास की ओर देखना पड़ेगा । इतिहास बतलाता है कि वैयक्तिक और जातीय जीवन में एक ऐसी स्थिति अवश्य प्राती है जब कि नकारात्मक और विरागात्मक तत्त्व प्रमुखता पाते हैं । नैतिक विकास उच्च प्रेरणाओं के प्रति निम्न प्रेरणाओं की अधीनता पर आधारित है । कभी ऐसी विशेष परिस्थिति भी आती है जब कि निम्न प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करना उच्च प्रेरणाओं को महत्त्व देने से अधिक आवश्यक हो जाता है | अतः केवल उच्च प्रेरणाओं को महत्त्व देना पर्याप्त नहीं है । ये तथ्य बतलाते हैं। कि नैतिकता आत्म-संयम और आत्म-वर्जन से प्रारम्भ होती है । नैतिक जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का अध्ययन यह बतलाता है कि बिना त्याग और आत्म-वर्जन की नकारात्मक प्रवृत्तियों के नैतिक जीवन सम्भव नहीं है । जीवन के नकारात्मक पक्ष से पूर्ण रूप से स्वतन्त्र परिस्थिति की कल्पना करना असत्य है | चाहे हम सुखवादियों के साथ यह भी स्वीकार कर लें कि मनुष्य में 'सुख की इच्छा है, किन्तु यह एक अकाट्य सत्य है कि कष्टसहिष्णुता के लिए तत्पर रहने की क्षमता सद्गुणों की प्राप्ति का एक अनिवार्य अंग है ।
२३४ / नीतिशास्त्र
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