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________________ भारतीय नीतिशास्त्र श्रध्याय २२ : चार पुरुषार्थ काम : अर्थ : धर्म : मोक्ष | अध्याय २३ : चार्वाक दर्शन ३२७-३३५. चार्वाक दर्शन एवं जड़वाद : उत्पत्ति-काल तथा ग्रन्थ : दो वर्ग : शुद्ध बुद्धिमय जीवन अथवा निःस्पृहतावाद की प्रतिक्रिया : धर्म की कटु आलोचना : जड़वादी दर्शन - प्रत्यक्ष पर प्राधारित : चार्वाक नैतिकता : परम ध्येय - काम : निःस्पृहता प्रवांछनीय | चतुर्थ भाग श्रालोचना. भोगवादी : अनैतिक : अन्तर्निहित सत्य : अमान्य और अवांछनीय दर्शन | मार्गनिर्देशन : फलासक्ति व्यक्ति नगण्य नहीं है । ३२५-३२६. श्रध्याय २४ : गीता ३३६-३४५ रचनाकाल और रचयिता : गीता की समन्वयात्मक दृष्टि: नैतिक मूल्य : कृष्ण तथा अर्जुन का व्यक्तित्व : नैतिक समस्या और उसका समाधान : कर्म, अकर्म का प्रश्न : कर्मयोग और कर्मसंन्यास : निष्काम कर्म – प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग का समन्वय : आत्म-शुद्धि और अर्पण-बुद्धि निष्काम कर्म के लिए अनिवार्य : वसुधैव कुटुम्बकम् - व्यक्ति और समाज : कर्मवाद - स्वतन्त्रता का प्रश्न । - Jain Education International श्रालोचना अनुचित : वैराग्यवाद को अस्वीकार : श्रध्याय २५ : गांधीजी ३४६-३५६ जीवनी : महत्त्वाकांक्षा - पृथ्वी पर रामराज्य की स्थापना : गांधी [ १५ ] For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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