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________________ प्राचीन सुखवाद अथवा मनोवैज्ञानिक सुखवाद स्वार्थ सुखवाद-प्राचीन काल में सुखवाद की सर्वप्रथम नींव यूनान में पड़ी। सुकरात की मृत्यु के पश्चात् उसके अनुयायी, ऍरिस्टिपस ने उसके सिद्धान्त को स्पष्ट रूप से समझाने का प्रयास किया। उसके इस प्रयास के फलस्वरूप ही स्वार्थ सुखवाद (Egoistic Hedonism) या मनोवैज्ञानिक सुखवाद (Psychological Hedonism) की उत्पत्ति हुई । प्राचीन सुखवाद वैयक्तिक और स्वार्थपूर्ण है। वह इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य का कर्तव्य केवल अपने ही प्रति है। मनुष्य को अपने सुख की खोज करनी चाहिए चाहे उसका सुख दूसरों के लिए विनाशकारी ही सिद्ध हो । जब भी वैयक्तिक सुख और सामाजिक सुख के बीच विरोध उत्पन्न हो तब मनुष्य को चाहिए कि निश्चित रूप से अपने ही सुख की खोज करे । मनुष्य का एकमात्र अपने प्रति कर्तव्य है, प्रात्मसुख ही उच्चतम नैतिक ध्येय है। यह सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक भी है। यह इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को मानता है कि मनुष्य स्वभाववश सदैव सूख की खोज करता है। उसकी इच्छा का परम केन्द्र सुख है । उसकी सहज प्रवृत्तियाँ और स्वभाव सुख की खोज करते हैं। मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथ्यात्मक है। वह मनुष्य स्वभाव का वास्तविक चित्रणमात्र, वर्णनमात्र करता है । वह पुनः दो भागों में बांटा जा सकता है : स्थूल और संस्कृत (gross and refined) । स्थल सुखवादी अधिक-से-अधिक इन्द्रिय-सुख को महत्त्व देते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य आवेगपूर्ण और उत्तेजनापूर्ण जीवन बिताना चाहता है। किन्तु संस्कृत सुखवादी शान्त सुख को महत्त्व देते हैं । उनके अनुसार मनुष्य दुःखों और कष्टों से बचना चाहता है। ___ स्थूल सुलवाद : सिरेनैक्स-स्थूल सुखवाद का प्रवर्तक ऍरिस्टिपस' (Aristippus) था। ऍरिस्टिपस सीरीन देश का निवासी था। अतः उसका सिद्धान्त सिरेनैक्स (Cyrenaics) कहलाया। ऍरिस्टिपस अपने को सुकराल का मतावलम्बी मानता था। सुकरात के अनुसार जीवन का ध्येय आनन्द है। कर्मों के मूल्य को समझना ही बौद्धिक जीवन का उद्देश्य है। कर्मों को समझना, उनके तात्कालिक भविष्यत् और सुदूर भविष्यत् के सुखप्रद और दुःखप्रद परिणामों को समुचित रूप से प्राकना व्यक्ति का कर्तव्य है। ऍरिस्टिपस ने सुकरात के इस सिद्धान्त को स्थूल सुखवादी. रूप दे दिया। उसका कहना था कि जिस १. जन्म लगभग ४३५ ई. पू. : सुसाद / १२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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