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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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लोंग खारिक सु नारिकेल सुक्खकारजी । और बादाम पुंगी फलादि सारजी ॥ लेइ निज हाथमें सु भक्ति धरिकं सही । जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही ॥८ ॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्व. स्वाहा । नीर गन्ध अक्षत सुफूल चरु सोईजी
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दीप अरु धूप फल अरघ संजौईजी ॥ पुरट थाली विषै भक्ति करिके सही ।
जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्योऽनर्घ्यं पदप्राप्तयेऽर्घ्यं निर्व. स्वाहा । धर्म भवकूप तैं काढ़नेको रसी।
भव उदधि पार करतार नवका इसी । धर्म सुख दैन जिमि तात माता सही ।
जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही ॥१० ॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षणधर्मेभ्यो महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला-दोहा दश वृष रतन मिलायके, माल करै भवि जोय | धरै आपने उर विषै, ता सम और न कोय ॥ १ ॥ बेसरी छन्द
दशलक्षण वृष शिवमग दीवार, धर्म थकी सुख पावै जीवा । मुकति दीप पहुंचावन नावा, ये दश धर्म जजौं जुत भावा ॥
१ - दीपक ।
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