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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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सो ले अक्षत जनमन हर्षत भक्ति करत ते शीश नवाई । किंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय- अक्षयपदप्राप्तयेऽक्षतान् नि. । फूलसु प्यारा गंध भरारा वर्ण अपारा शोभ घने । ना आकारा अलिगण धारा सुरद्रुम सारा जेम ठने ॥ ने कुसुम जु आया माल बनाया नेह लगाया भक्तिमयी । किंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं नि. । नारस आने अधिक सुहाने षट्विधि जानै सुखदाई। शुभ मोदक कीने हाथ सु लीने मधु रस भीने चरु लाई ॥
रि कंचन थाला भक्ति विशाला कह गुण माला ज्ञानमई ॥ गकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. । णि दीपक नाना तेज महाना मोह नशाना ज्ञान करा । रि कंचन थारी भक्ति उचारी अर्थ अपारी पाप हरा ॥ या तम धोवै गुणमणि पोवै शिवमग जोवै ज्योतिमयी । गकिंचन धर्मा जजि शुभ कर्मा दे फल परमा थान सही ॥ ॐ ह्रीं उत्तमाकिंचन्यधर्माङ्गाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. । श गंध मिलाई धूप बनाई अधिक सुहाई सुखकारी । लयागिरि डारा अगर सुधारा अलि गुंजारा मद धारी ॥
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