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श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ***************************************
सुरथान माहीं वरत नाही, मनुज हूँ शुभ कुल लहैं। तातै सुअवसर है भलो, अब करौ पूजा धुनि कहै।
बेसरी छन्द जाने दशलक्षण व्रत कीना, से सत्पुरुषनिमें परवीना। भवसागर फिरनो मिट जावै, जो नर दशलक्षण वृष भावै॥
भुजंगप्रयात छन्द यहीधर्म सारं करै पाप क्षारं, यहीधर्म सारं, करै सुख अपारं। यहीधर्मधीरा, हरैलोकपीरा, यहीधर्म मीरा करैलोकतीरा।
त्रिभंगी छन्द यह धर्म हमारा, सब जग प्यारा, जगत उधारा हितदानी। यह दशविधि गाया, जन मन भाया, उच्च बताया जिनवानी॥ यह शिव करतारा, अघतें न्यारा, भवि उद्धारा मुनि धारा। ताकौ मैं ध्याऊं शीश नवाऊं, अर्घ चढ़ाऊं सुखकारा ॥
. चौपाई छन्द या व्रतकी महिमा कहि वीर, दशविधि धर्म हरै भवपीर। इसी धर्म बिन जग भरमाय, जजहु धरम अति दुरलभ पाय॥ दोहा-दश प्रकारको धर्म यह, दशविधि सुरतरु जान।
वांछित पद सेवक लहैं, अधिक कहा सुखदान॥ सोरठा-धर्म हमारा नाथ, धर्म जगतका सेहरा। भव भवमें हो साथ, और न वांछा मन वि. ॥
मण्डल मध्ये पुष्पांजलि क्षिपेत्। १-स्वर्ग। २-धर्म। ३- प्रधान। ४-कल्पवृक्ष
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