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श्री दशलक्षण व्रत मंडल विधान का माडना
४
rench
त्याग
आर्जव
आकिंचन्य
पाटव
११
क्षमा
ब्रह्मपर
२३
१४
आत्म कल्याण के लिए दश प्रकार की प्रवृत्तियों को आचरित करने का उपदेश केवली भगवंतो. ने दिया है। मानव से महामानव और महामानव से अहँत परमेष्ठी पद तक पहुँचने के लिए यह दश लक्षण धर्म ही लोकोत्तर हैं। प्रत्येक धर्म की आराधना के साथ उनके प्रमुख भेदों की आराधना के अर्घ इस विधानमें आराधे गए हैं। यह । व्रत वर्ष में तीन बार भाद्रपद शुक्ला ५ से १४ माघ शुक्ला ५ से १४ तथा चैत्र शुक्ला ५ से १४ तक आराधित करना चाहिए।
इस विधान का मंत्र इस प्रकार हैं। ___ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव सत्य शौच संयम तप त्याग अंकिचन ब्रह्मचर्य धर्मांगाय नमः।
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