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________________ रक्त से सना वस्त्र रक्त से स्वच्छ नहीं हो मनवा । मन करे तो कह देना चाहिए कि रोगी नहीं मरेगा - १७० (२) आपका चन्द्र स्वर न चलता हो और सूर्य स्वर चलता हो उस समय प्रश्न कर्त्ता यदि बाईं तरफ से प्रश्न करे तो कह देना चाहिए कि रोगी किसी प्रकार भी नहीं जी सकता - १७१ (३) कोई व्यक्ति पूर्ण ( भरी) दिशा में से आकर खाली दिशा में रोगी सम्बन्धी प्रश्न करे तो कह देना चाहिए कि रोगी रोग मुक्त नहीं होगा - १७२ (४) यदि कोई खाली स्वर से वहते स्वर की तरफ ग्राकर प्रश्न करे तो रोगी अवश्य अच्छा हो जायगा – १७३ - रोगों का कारण वात, पित्त, कफ निवास उदर विषय, रहत सदा भरपूर ॥१७६॥ ) - वात पित्त कफ तीन ये, सम से सुख होय देह में, वाय चौरासी पिण्ड में, कफ त्रय भेद बखानिये, वायु फुनि शत धमनी मांहि ते, खन्ध मांहि फुनि जानजो, पित्त तणो नित्त वास । जठराग्नि में संचरत, दिवानाथ पति तास ॥ १७७॥ नाभि कमल थी वाम दिस, कर पल्लव त्रय जान । नाड़ी युगल है कफ तरणी, रही हिये में आन ।। १७८ ॥ शशि स्वामी तस जानजो, यह विवहारी बात । निश्चय थी लख एक में, तीनों आय समात ॥ १७६ ॥ अपनी-अपनी ऋतु विषय, वात पित्त कफ तीन । ज़ोर जनावत देह में, तस उपचार प्रवीन ॥ १८० ॥ वैद्य ग्रन्थ नहीं लख्यो, तिन का अधिक प्रकार । मूल तीन सुं होत हैं, रोग अनेक प्रकार || १८१।। (दोहा) - भयो पिण्ड त्रय जोग । विषम होत होय रोग ।।१७४ ॥ पित्त पच्चीस प्रकार । द्वादश शत चित्त धार ।।१७५ ।। स्वामी है तस सूर । ४० - जिधर का स्वर चलता हो उस दिशा के सिवाय सब दिशायें खाली मानी गई हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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