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________________ २८६ १७० ६० नाड़ियों के स्थान . १५६१२ समाधि के भेद ६१. वायु का वासस्थान १५७ ६३. अजपा जाप के शब्दों के मर्म सा |६४ योगी का स्वरूप.. २.परिशिष्ट १ 1.९५ ध्यान और समाधि २६४ ६२. योग शब्द का अर्थ १६१६६ पदार्थ निरूपण २७८ ६३. योग के भेद . १६२ / ९७ जीवसिद्ध ५७ प्रकार से २७६ ६४. हठ योग का अधिकारी १६६ ६८ आर्त ध्येय चार भेद २८३ ६५. साधक की आहार विधि १६७ ६६ रौद्र ध्येय चार भेद २८४ ६६. हेयोपादेय वस्तु । १६८ १०० धर्म ध्येय चार भेद ६७ काम में आने वाली वस्तुएं १६६ | १०१ शुक्लध्येय चार भेद २८८ ६८ योगी के लिये स्थान १७० १०२ सविकल्प निर्विकल्प का ६६ मासन दृष्टांत २८६ ७०. प्रासन [चित्र] १७२ | १०३ ध्येय आदि पाठ भेद २६३ ७१. स्वरोदय स्वरूप १७६ ७२. स्वरोत्थान १७६ ३-परिशिष्ट-२ २६४ ७३ तत्त्वों का स्वरूप १८० | १०४ ध्यान क्रम ७४ जैन रीति से तत्त्व १८१ १०५. ध्यानी का लक्षण २६४ ७५ तत्त्व साधन रीति १८७ १०६. मन के भेद, लक्षण २६५ ७६ तत्त्वों की पहचान १८८ | १०७. बहिरात्मा, अन्तरात्मा और ७७ क्रियाएं १९१/- परमात्मा का स्वरूप ७८ बन्ध के प्रकार १६७ | १०८ स्थिरता का क्रम ७६. कुम्भकों के नाम १६९ १०६. एकाग्रता लयावस्था २६६ ८० मुद्राओं का वर्णन २०४ | ११०. अपने पर विश्वास ३०. ८१ प्राणायाम के तीन भेद २१६ | १११. मानसी पूजा ३०४ ८२. प्राणायामका काल नियम २२० । ११२ रूपस्थ ध्यान फल ३०६ ८३. बन्ध लगाने की रीति : २२२ | ११३ वृत्ति अवलोकन ३०९ ८४ चक्रों के नाम २२४ | ११४ विकास, जागति ३१४ ८५. मूलाधार चक्र का वर्णन २२५ ११५ भूगर्भ । ३१४ ८६. कुंडलिनी नाड़ी २२५ ११६ ध्यान का स्थान ३१५ ८७ चक्रों का वर्णन २२६ ११७. वृत्ति निरीक्षण ३१६ ८८. नाड़ियां २२८ ११८ रूपातीत ध्यान ३१६ ८६ कुंडली चलाने का उपाय . २३० | ११६ निरालम्बन ध्यान ३१६ १०. मन ठहराने का दृष्टांत २३३ / १२० ग्रन्थ कर्ता का परिचय ३२० ११. मानसी पूजां की रीति .. २४१ । २६६ २९७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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