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________________ जो ज्ञान पूर्वक संयमकी साधनामें रत है वह सच्चा श्रमरण है । [ ४५ अर्थ – यदि मेष संक्रांति की प्रथम घड़ी में दोनों स्वरों में से किसी भी स्वर में अग्नि तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि वर्षा कम होगी । रोगपीड़ाएं फैलेंगे, दुर्भिक्ष होगा, देश भंग होगा, तथा प्रजा दुःखी होगी - १२७ - १२६ वायु तत्त्व (दोहा) - वायु तत्व स्वर में चलत, नृप विग्रह कछु थाय । अल्प मेघ बरसे मही, मध्यम वर्ष कहाय ॥ १३० ॥ अर्द्धा सा अन्न नीपजे, खड थोड़ा-सा होय | अनिल तत्त्व का इरणी परे, मन मांहि फल जोय ॥ १३ ॥ अर्थ-यदि उस समय दोनों स्वरों में से किसी भी स्वर में वायु तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि राजा में कुछ विग्रह होगा, वर्षा थोड़ी होगी, जमाना साधारण होगा, पशुनों के लिए घास चारा थोड़ा होगा, आधा अनाज पैदा होगा इत्यादि फल होगा - १३० - १३१ श्राकाश तत्त्व (दोहा) - स्वर मांही जो प्रथम ही, बहे तत्त्व आकाश । तो ते काल पिछानिये, होय न पूरा घास ।।१३२॥ इन विध थी ए जानिये, तत्त्व स्वर के मांहि । फल मन में पिरण धारिये, या में संशय नाहिं ।। १३३ ॥ अर्थ-यदि उक्त समय में आकाश तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि बड़ा भारी दुर्भिक्ष पड़ेगा । पशुओं के लिए पूरा घास चारा भी न होगा - १३२ इस प्रकार स्वरों में तत्त्वों का फल जानना चाहिए इस बात में किंचित - मात्र भी सन्देह नहीं - १३३ वर्ष फल जानने की दूसरी रीति चैत्र सुदि प्रतिपदा १. पृथ्वी तत्त्व प्रतिपदा, कर तस लगन विचार । चलत तत्त्व सुर तिन समय, ताको वर्ण निहार || १३४|| For Personal & Private Use Only (दोहा) मधु मास सित Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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