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________________ ASTRA साधु को सागर की अंति गम्भीर होना चाहिए। वृद्धि होगी। राजा भी अत्यन्त सुखी होंगे । इत्यादि बहुत श्रेष्ठ फल होगा-१२२ जल तत्त्व (दोहा)-चलत तत्त्व जल तिण समय, शशिं सुर में जो प्राय। ताको फल अब कहत हूं, सुनजो चित्त लगाय ॥१२३॥ मेघ वृष्टि होवे घणी, उपजे अन्न अपार । : सुख होय परजा सहु, चिदानन्द चित्त धार ॥१२४॥ धर्म बुद्धि सब कुं रहे, पुण्य दान थी प्रीत । आनन्द मंगल उपजे, नृप चाले शुभ नीत ।।१२५।। शशि सुर में ये जानिये, तत्त्व युगल सुखकार । तीन तत्त्व आगल रहे, तिन को कहूं विचार ॥१२६।। . (२) अर्थ :-जिस समय मेष सक्रांति (वैसाख मास) लगे उस समय स्वर में यदि जल तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि इस वर्ष में वर्षा बहुत होगी। पृथ्वी पर अपरिमित्त अन्न पैदा होगा। सब प्रजा सुखी होगी। सबका चित्त धर्म में अनुरक्त रहेगा अर्थात् राजा और प्रजा धर्म के मार्ग पर चलेंगे। राजा भी नीतिवान होगा, इत्यादि । १२३ से १२५ सारांश यह है चन्द्र स्वर में पृथ्वी और जल तत्त्व चलते हों तो वर्ष सुख देने वाला होगा । यदि ये दोनों तत्त्व सूर्य स्वर में चलते हों तो शुभ फल कम देगा अब बाकी के तीन तत्त्वों (अग्नि-वायु-आकाश) के विषय में वर्ष फल का विचार कहता हूं-१२६ अग्नि तत्त्व (दोहा)-लगे मेष सक्रांति तब, प्रथम घड़ी स्वर जोय । जैसो स्वर में तत्त्व बहे, तसो ही फल होय ॥१२७॥ जो स्वर में पावक चले, अल्प वृष्टि तो होय । रोग दोख होवे सही, काल कहे सहु कोय ।।१२८।। देश भंग परजा दुःखी, अग्नि तत्त्व प्रकाश । दोउ स्वर में होय तो, अशुभ अहे फल तास ॥१२६।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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