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र उच्च मादों के लिए मरना भी जीवन का श्रेष्ठ उद्देश्य है।
- वय ज्ञान को कहता हूं । ____नासिका के भीतर से जो श्वास निकलता है उसका नाम स्वर है। चित्त को अति स्थिर करके स्वर को पहचानना चाहिए और स्वर को पहचान कर भविष्य में होनहार के शुभाशुभ का विचार करना चाहिए-१० __स्वर का सम्बन्ध नाड़ियों से है । यद्यपि शरीर में नाड़ियां बहुत हैं तथापि इनमें से चौबीस नाड़ियां प्रधान हैं और इन चौबीस नाड़ियों में से दस नाड़ियां अति प्रधान हैं एवं उन दस नाड़ियों में से भी तीन नाड़ियां अतिशय प्रधान मानी हैं। जिनके नाम इंगला, पिंगला और सुखमना हैं। इनके गुणों और स्थानों का वर्णन आगे करेंगे ॥११-१२॥ (दोहा). भृकुटी चक्र सुं होत है, स्वासा को परकास ।
बंकनाल के ढिग थई, नाभि करत निवास ॥१३॥ नाभी थी फुनि संचरत, इंगला पिंगला धाम । दक्षिण दिश है पिंगला, इंगला नाड़ी वाम ॥११॥
इन दोऊ के मध्य में, सुखमन नाड़ी होय । - सुखमन के परकास में, सुर पुनि चालत दोय ॥१५॥ अर्थ-दोनों भोओं के बीच में जो आज्ञारव्य नाम का चक्र है वहां से श्वास का प्रकाश होता है तथा पिछली बंकनाल में से होकर नाभी में जा कर ठहरता है, वहां से फिर श्वास इंगला और पिंगला द्वारा निकलता है। १-ग्रन्थकर्ता ने स्वयं ही इन दस नाड़ियों के नाम स्थानादि का इसी ग्रन्थ के
पद्य नं०४३१ से ४४१ में वर्णन किया है। २-अथ मंडलेषु वायोः प्रवेशानःसरणकालमवगम्य । उपदिशति भुवनवस्तुषु विचेष्टितं सर्वथा सर्वम् ॥३६।।
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(शुभचन्द्राचार्य कृते ज्ञानार्णवे) प्रथं-(पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आदि) मंडलों में पवन के प्रवेश और नि:सरण काल को निश्चय करके ध्यानी पुरुष, जगत भर में जो पदार्थ हैं उन सबको सर्व प्रकार की चेष्टाओं का वर्णन करते हैं।
(नोट) काल ज्ञानादि का विस्तृत विवरण ग्रन्थकार क्रमश: स्वयं करेंगे।
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