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________________ साधारण मानव विभिन्न कामनाओं से पिस रहता है । हैं। १ अव्यक्त चेतना, २ व्यक्त चेतना। अव्यक्त चेतना प्यार पाच स्थावरों में है । व्यक्त चेतना दोइन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय त्रस में है । ६. जिसमें छः लक्षण हों वह ही विशेष जीव हैं, यदुक्तं श्री उत्तराध्ययन सूत्र "नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । वीर्य चोवओगं च, एयं जीवस्स लक्खणं ।" अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्य और उपयोग यह जीव के लक्षण हैं। यदि यहां कोई ऐसी शंका करे कि स्थावर वनस्पति आदि में छः लक्षण क्यों कर बनेंगे और इन छः लक्षणों के न होने से उनका जीव मानना किस प्रकार सिद्ध होगा ? इसका उत्तर यह है कि हे देवानुप्रिय ! पक्षपात को छोड़ कर ज्ञान-दृष्टि से बुद्धिपूर्वक विचार कर हमारी युक्ति को देखोगे, तो वनस्पति आदि पांच स्थावरों में ये छओं लक्षण प्रतीत होंगे। सो आत्माथियों के वास्ते हम कुछ युक्ति दिखाते हैं, छों लक्षण बताते हैं, तुम्हारा सन्देह भगाते हैं, विवाद को मिटाते हैं, क्योंकि देखो जो वनस्पति हैं उसको भी सुख-दुःख का भान है । वह दुःख होने से मुरझाई हुई मालूम होती है, और सुख होने से प्रफुल्लित मालूम होती है । सो दुःख-सुख के जानने वाला ज्ञान होता है, इस रीति से ज्ञान सिद्ध हुआ। वह ज्ञान दो प्रकार का है, १ व्यक्त, २ अव्यक्त । इसमें अव्यक्त ज्ञान है । ऐसे ही दर्शन के दो भेद हैं.१ चक्षुदर्शन, २ अचक्षुदर्शन । दर्शन नाम देखने का है, तो इसमें अचक्षुदर्शन सिद्ध हो गया। तीसरा चारित्र. नांम त्याग का है। इसके भी दो भेद हैं १ जान कर त्याग करना, २ अनमिले का त्याग। सो देखो वनस्पति को जलादि न मिलने से उसका भी अव्यक्त अर्थात्त अनमिले का त्याग हुआ, तो किञ्चित् अकाम निर्जरा का हेतु चारित्र भी ठहरा । चौथा तप नाम शीत उष्ण सहता हुप्रा सन्तोष पावे उसका है। तो देखो शीतोष्ण का सहन करमा वनस्पति में भी है, इसलिए तप भी सिद्ध हो गया। पांचवां वीर्य नाम पराक्रम का है, सो यदि इसमें पराक्रम न होता, तो उसका फूलना, बढ़ना नहीं बनता, इसलिए वीर्य भी निश्चित हो गया । उपयोग नाम उसका है कि जो अपनी इच्छा से अवकाश पाता हुआ जाय, जिस तरफ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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