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________________ मनुष्य को उसकी अपनी दुर्बुद्धि ही पीड़ा देती श्राकाशास्तिकाय के गुरण-पर्यायों का वर्णन गुरण - रूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ अवगाहना- दान । पर्याय – १ २ देश, ३ प्रदेश ४ अगुरुलघु । धर्मास्तिकाय के गुरण पर्याय गुण- १ अरूपी, २ अचेतन, ३ प्रक्रिय, ४ गति सहायता । पर्याय - १ स्कन्द २ देश, ३ प्रदेश, ४ अगुरुलघु । श्रधर्मास्तिकाय के गुरण-पर्याय गुण – १ अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ स्थिति सहायता । पर्याय१ स्कन्ध, २ देश, ३ प्रदेश, ४ अगुरुलघु । पुद्गलास्तिकाय के गुण- पर्याय गुरण – १ रूपी, २ अचेतन, ३ सक्रिय, ४ पूरण- गलन - बिखरन - सड़न । पर्याय- १ वर्ण, २ गन्ध, ३ रस, ४ स्पर्श अगुरुलघु सहित । कालद्रव्य के गुरण पर्याय गुण - अरूपी, २ अचेतन, ३ अक्रिय, ४ नया पुराना वर्तना लक्षण । पर्याय- १ अतीत, २ अनागत, ३ वर्तमान, ४ अगुरुलघु । ये छः द्रव्यों के गुरण पर्याय कहे । ऊपर लिखी रीति से छत्रों द्रव्यों को जाने और इसमें से पांच प्रकार के अजीव को छोड़कर एक जीव द्रव्य को ग्रहण करे । इसका विशेष विस्तार तथा खण्डन-मण्डन सिद्धान्तों में बहुत लिखा है । तथा 'द्रव्य अनुभवरत्नाकर' ग्रंथ हमारा रचा हुआ है, उसमें आदि से लेकर अन्त तक सर्व द्रव्यों का ही प्रतिपादन किया है, सो वहां देखो। यहां पर ग्रंथ विस्तृत हो जाने के भय से विस्तार से नहीं लिखा । इस जगह तो केवल हमको जीव अर्थात् आत्मा का वर्णन करके जिज्ञासुओं के लिए श्रात्मा को सिद्ध कर ध्येय रूप धारणा से ध्यान और समाधि करनी है । इसलिए जीव द्रव्य को ५७ प्रकार से सिद्ध करते हैं । ५७ प्रकारों के नाम १ निश्चय, २ व्यवहार, ३ द्रव्य, ४ भाव, ५ सामान्य, ६ विशेष, ७ नामनिक्षेप, ८ स्थापना - निक्षेप, द्रव्य - निक्षेप, १० भाव- निक्षेप, ११ प्रत्यक्ष-प्रमाण, www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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