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________________ सत्यवादी लोग अपनी प्रतिज्ञा को कभी मिया नहीं होने देते। P मोहित होना तो दूर रहा, प्रत्युत ग्लानि होने लगी; क्योंकि साल उसका स्वरूप अच्छा मालुम होता था और प्रातःकाल' को उस वेश्या के पास तो बिखरे हुए थे और आंखों में गीढ़े आ रही थीं तथा मुख काजल से काला हो रहा था, रात्रि को पान खाने से होठों पर काली पपड़ी जमी हुई थी, मैलेकुचैले कपड़े पहने हुई डाकिन की तरह सो रही थी, अपने रूप को खो रही थी, उस समय देखने वालों को दुखदाई हो रही थी। ___ इस रीति का हाल उस वेश्या का देखकर साहूकार के पुत्र के चित्त में ग्लानि उत्पन्न हुई और कहने लगा कि हाय-हाय ! इन चूडैलों के पीछे मैंने लाखों रुपये निष्फल व्यय किये, इन डाकनियों ने सायंकाल' को कपट कर मेरे को मोहित किया तथा मुझको अपनी आबरू से भी खोया, अब मैंने इनका चुडैलपन का हाल पा लिया, इसलिये मेरा दिल भी इनसे भर गया। अब कदापि इनके पास न आऊंगा, अपने धनको भी बचाऊग । मनुष्यों में अपयश भी न उठाना; बड़ों के नाम को न लजाना, अपने मान को बढ़ाना ही उचित है। ऐसा विचार कर अपने घर को चला आया, उसको आता देखकर उसकी स्त्री मुसकराने लगी और दोनों की चार नजर होते ही उस साहूकार के पुत्र को अपनी स्त्री के ऊपर ऐसा अनुराग हुआ कि उन वेश्याओं को भूल गया और उनके जाने का पश्चात्ताप करने लगा कि मैंने ऐसी रूपवती, सुशीला और आज्ञाकारिणी अपनी पत्नी को छोड़कर उन डाकिनियों की संगति में पड़कर अपना अपयश किया। यह सोचकर उसने अपने चित्त में प्रतिज्ञा की; कि आज से मैं वेश्या के यहां न जाकर घर पर ही चित्त लगाऊंगा। इस प्रतिज्ञा को करके अपने वाणिज्यव्यापार में प्रवृत्त हुआ। - जब सायंकाल हुआ तो उस लक्ष्मीसागर सेठ ने कहा, कि हे पुत्र ! अब इस काम को छोड़ो, क्योंकि पर्यटन का समय हो गया है, इसलिए पर्यटन करने के वास्ते जाओ। उस समय वह लड़का चुप हो गया। फिर कुछ काल के बाद साहूकार ने कहा, कि हे पुत्र ! तुम नि:संदेह जाओ, क्योंकि यह तुम्हारी आयु आनन्द उठाने की है, तथा घर में धन भी बहुत है, इसलिये तुम किसी बात की चिन्ता न करो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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